भारत में शतरंज ने पिछले कुछ सालों में काफी वृद्धि देखी है , इसका प्रमाण हमें हाल ही में Wijk aan Zee
में होने टाटा स्टील शतरंज टूर्नामेंट में देखने को मिला जहां तीन भारतीय किशोर खिलाड़ियों ने प्रतिस्पर्धा
की थी | जब बात भारतीय शतरंज की होती है तो विश्वनाथन आनंद का जिक्र जरूर होता है , पूर्व पांच
बार के विश्व चैंपियन 1988 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने और 2800 की elo रेटिंग पार करने वाले
कुछ खिलाड़ियों में से एक है |
आनंद के शेयर किये किस्से
शनिवार को पोस्ट की गई एक वीडियो में आनंद ने कुछ ऐसा साझा किया है जिसे वो अपनी “ यादों का
संग्रहालय” कहते है | उस वीडियो में उन्होंने अपने जीवन के सबक साझा किये है जिसने उनके
शानदार करियर को आकार दिया उन्हें एक व्यक्ति बनाया जो वो आज है | उनके museum में पहली
वस्तु आनंद की एक तस्वीर है जिसमें वो अपनी माँ को एक चाल समझाते दिख रहे है | वो कहते है की
वो उन्हें शतरंज में नवीनतम विकास बताना चाहते थे , यहाँ वो जो सबक साझा करते है वो ये है की आप
किसी विषय या अवधारणा को दूसरों को समझाने की क्षमता से कितनी अच्छी तरह समझते हैं |
ट्रेन यात्रा ने दी सिख
आनंद ने अपने उस समय के बारे में भी एक किस्सा साझा किया जब वो एशिया के पहले जूनियर चैंपियन
और भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने थे | आनंद बताते है “ मैं इस ट्रेन में जा रहा था और मेरे साथ में बैठे
हुए एक बुजुर्ग ने पूछा की मैं क्या करता हूँ | मैंने कहा “शतरंज का खिलाड़ी हूँ , पर उन्होंने कहा नहीं
आप करते क्या है ? मैंने फिर उनसे सिर्फ इतना कहा की मैं एक प्रो शतरंज खिलाड़ी हूँ |
आनंद ने साझा किया सबक
अंत में उन्होंने कहा “ नौजवान , अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है तो मेरी दी हुई सलाह पर ध्यान
दीजिए स्पोर्ट्स एक बहुत ही जोखिम भरा करियर है। यदि आप विश्वनाथन आनंद होते तो आप शतरंज
से जीवन यापन कर सकते थे अन्यथा ये काफी मुश्किल होगा | आनंद ने कहा की इस किससे से वो ये
सबक साझा करना चाहते है की यह नहीं मानना चाहिए की शतरंज अप्रत्याशित है, लेकिन एक इंजीनियर
या डॉक्टर होना स्थिर है। कोई भी करियर अस्थिर हो सकता है |