Penalty Shootout in Football in Hindi: फुटबॉल जैसे रोमांचक खेल में पेनल्टी शूटआउट सस्पेंस और ड्रामा से भरा होता है। खेल का समय समाप्त हो जाने के बावजूद भी जब यह निर्धारित न हो पाए कि विजेता कौन है तब तक यह खेल चलता रहता है। यह पेनल्टी शूटआउट ही की वजह से ही चलता रहता है। यानी Penalty शूटआउट खेल के विनक को खोजने में मददगार होता है। इसका इस्तेमाल किसी भी Football Tournament के नॉकआउट मुकाबलों में खेला जाता है।
आज के इस आर्टिकल में हम इसी पेनल्टी शूटआउट के बारे में बात करेंगे कि आखिर कब इस नियम की फुटबॉल में एंट्री होती है। कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है
Penalty Shootout History। पेनल्टी शूटआउट का इतिहास
फुटबॉल के नॉकआउट फुटबॉल मुकाबलों में जब भी मैच ड्रॉ होता है तब पेनल्टी शूटआउट किया जाता है। यह ड्रॉ को खत्म करके मैच का विजेता सुनिश्चित करता है।
पेनल्टी शूटआउट नियम आने से पहले नॉकआउट मुकाबले तब तक खेले जाते थे जब तक कोई परिणाम नहीं निकलता था। ऐसे में इसे आसान बनाने के लिए पेनल्टी शूटआउट का नियम लाया गया। फीफा विश्वकप में इसका इस्तेमाल देखने को मिला था।
पेनल्टी शूटआउट पहली बार इजरायल के योसेफ डेगन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। यह नियम तब आया जब इजरायल 1968 के ओलंपिक गेम्स में मैच में बराबर गोल के होने के बावजूद टॉस होने पर हार मिली थी। यानी टॉस के जरिए विजेता की घोषणा की गई थी।
1970 में लागू हुआ पेनल्टी शूटआउट
इसके बाद साल 1970 Federation International De Football Association ने पेनल्टी शूटआउट को अपनाया था। साल 1976 में पेनल्टी शूटआउट को यूगोस्लाविया में यूरोपीय चैम्पियनशिप में लागू कर दिया गया था।
पेनल्टी शूटआउट कब किया जाता है?
अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (International Football Association Board ) द्वारा पब्लिश खेल के नियमों के अनुसार पेनल्टी शूटआउट का नियम बहुत ही सिंपल है। यदि knockout stages में कोई मैच 90 मिनट के नियमित खेल और 30 मिनट के अतिरिक्त समय के बाद ड्रॉ पर समाप्त होता है तो penalty shootout होता है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक Team को बारी-बारी से पेनल्टी मार्क से शूट करना होता है। पेनल्टी मार्क, गोल लाइन से 12 गज की दूरी पर होता है। यहां सिर्फ विरोधी गोलकीपर को हराना होता है।
Penalty Shootout के बेसिक रूल
- प्रत्येक टीम से पांच खिलाड़ियों को शॉट लेने के लिए चुना जाता है।
- टीमें बारी-बारी से गोल पर निशाना लगाती हैं।
- पांच राउंड के बाद सबसे अधिक गोल करने वाली टीम को विजेता घोषित किया जाता है।
- यदि पहले 5 शॉट के बाद भी स्कोर बराबर रहता है तो फिर से पेनल्टी शूटआउट किया जाएगा।
- जब तक खेल का परिणाम नहीं निकल जाता तब तक शूटआउट किया जाता है।
- पेनाल्टी शूट में वहीं 5 खिलाड़ी शामिल हो सकते हैं जो खेल के अंतिम समय में मैदान में होते हैं।
- 5 बार 5 अलग-अलग खिलाड़ी किक मारता है।
- गोलकीपर गेंद को Kick करने से पहले Goal Line के साथ Horizontally रूप से आगे बढ़ सकता है लेकिन जब तक Football हिट न हो जाए तब तक उसे लाइन से बाहर नहीं आना चाहिए।
पेनल्टी शूटआउट में मनोवैज्ञानिक लड़ाई भी लड़नी पड़ती है। क्योंकि इस दौरान खिलाड़ी के ऊपर बहुत ही प्रेशर होता है। टीम की उम्मीद एक किक पर टिकी होती है। गोलकीपर स्ट्राइकर को डराने या उनके शॉट की दिशा का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं। खिलाड़ी अक्सर किक मारने की रणनीति पहले से ही तय कर लेते हैं।
पेनल्टी शूटआउट के मैचों का किस्सा
फेनल्टी किक में कोच भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वह इसके लिए 5 बेस्ट खिलाड़ियों का चयन करता है। कोच उसी खिलाड़ी का चयन करता है जो मानसिक रूप से बहुत ही मजबूत हो और गोल करने में सक्षम हो।
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1994 विश्व कप फाइनल में ब्राजील ने शूटआउट में इटली को हराया था। रॉबर्टो बग्गियो किक मारने से चूक गए थे।
यूरो कप 1996 में, सेमीफाइनल में इंग्लैंड का सामना जर्मनी से हुआ और मैच ड्रॉ के बाद पेनल्टी में चला गया। गैरेथ साउथगेट के शॉट को बचाए जाने के बाद Germany ने जीता हिसल की थी।
2012 चैंपियंस लीग फाइनल में चेल्सी ने बायर्न म्यूनिख को अपने ही स्टेडियम में हराया था। यह मैच भी पेनल्टी शूटआउट में गया था।
निष्कर्ष Conclusion
Penalty Shootout in Football में हमने आपको इससे जुड़ी हर एक बात बताने की कोशिश की है। इस लेख में आप पेनल्टी शूटआउट से जुड़ी हर एक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पहली बार कब आया और क्यों इसका इस्तेमाल किया जाता है से लेकर सब चीज आपको यहां मिल जाएगी।
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