स्टीफन कॉन्सटेंटाइन ने isl के मैचों मे थोड़े बदलाव की माँग की है। वो चाहते है इस बार कि isl मे 12 टीम हो, 32 गेम खेले जाए।जिससे खिलाडियों कि शमताओं के बारे मे सबको ज्ञात हो।
और उन्होंने एक मुख्य तत्य यह रखा है कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय मूल के खिलाडियों को मौका देने का क्यूँकि ये भारत की लीग है।
मुझे लगता है भारतीय खिलाड़ियों के पास अभी भी वह नींव नहीं है जिसकी उन्हें बाहर जाकर खेलने में सक्षम होने की आवश्यकता है। उसकी पहचान गुरप्रीत को देखकर हो गई थी पर इसमे उनकी कोई गलती नही हैहै क्यूँकि उनके पास इसकी जानकारी नही थी।
मे बस इतना केहना चाहता हूँ कि मैं यहां हारने नहीं आया और मुझे पूरा यकीन है कि खिलाड़ी भी ऐसा ही महसूस करते हैं। लेकिन यह हमारा पहली बार है, हम एक नई टीम हैं। भारतीय लड़कों ने बहुत अच्छा जवाब दिया है, जो मुझे चाहिए और मैं उन्हें उस स्थिति में नहीं डालूंगा जो वे नहीं खेलते हैं।
प्रफुल्ल पटेल और कुशल दास ने मुझे ज्यादातर मामलों में वह करने का अधिकार दिया जो मुझे सबसे अच्छा लगा। अन्य लोगों के पास एजेंडा है। मैं यह सभी चीजों मे विश्वास नही रखता हूँ।
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जैसे मेने पहले भी कहा शुरुआत में मैं आईएसएल के खिलाफ था, पुरी तरह से नहीं बल्कि कुछ नियमों के खिलाफ। मैं खिलाड़ियों के मसौदे के खिलाफ था और यह एक आपदा साबित हुआ है।
मैं 6+1 विदेशियों के खिलाफ था क्योंकि मैं एक भारतीय लीग में भारतीय खिलाड़ियों को देखने जाऊँगा ना कि किसी अन्य विदेशी खिलाडी को।
पर अभी के नए शेड्यूल सही है जहां हफ़्तो के आकरी दिनों पर खेल खेले जा रहे हैं। लीग विकसित हुआ हैं, मुझे लगता है कि इसके सुधार मे थोड़ा अधिक समय लगा है लेकिन पहले से कहीं ज्यादा देर हो चुकी है।
और हमें अभी भी चीजें करने की जरूरत है। हमें 12 टीमों की जरूरत है। हमें प्रोमोशन और निर्वासन की जरूरत है। वह 22 खेल है। पहले छह और आकरी छह को विभाजित करें और आपके पास 10 और कठिन खेल हो सकते हैं।