भारतीय पुरुष हॉकी विश्वकप की टीम की घोषणा हो चुकी है. इसमें उड़ीसा के ही रहने वाले नीलम संजीप खेस का भी चयन किया गया है. उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में कुआरमुंडा ब्लाक के कादोबहाल डीपाटोली गाँव में रहने वाले नीलम आर्थिक स्थिति में बेहद ही निम्न स्तर के परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके परिवार के पास ना तो पक्का घर है ना ही गांव तक जाने के लिए पक्के सड़क. इतना ही नी नीलम के अवार्ड्स और सम्मान रखने के लिए भी घर में जगह नहीं है. बता दें नीलम विश्वस्तरीय खिलाड़ी होने के बाद भी उन्हें पूरी तरह से सुविधा नहीं मिल पा रही है.
हॉकी खिलाड़ी नीलम के घर में रहने को नहीं कमरे
इतना ही नहीं पांच पहले ही उनके गांव तक बिजली पहुंची है. बता दें पांच साल पहले ही वह दो दिन के लिए अपने गांव आए थे तब उनके यहाँ शौचालय की व्यवस्था की गई थी. इसके अलावा स्वच्छ भारत योजना में 12 हजार रुपए मिले थे पर अनुदान नहीं मिला था.
जब वह स्टार नहीं थे और गांव में रहकर ही प्रैक्टिस करते थे तब उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे भी नहीं थे. बांस और केंदु की लकड़ी से ही वह हॉकी स्टिक बनाकर उससे प्रैक्टिस करते थे. वहीं महुआ और बांस की गाँठ को गेंद के रूप में उपयोग करते थे. लेकिन उनकी यही मेहनत और लगन उन्हें इंटरनेशनल लेवल का बेहतरीन डिफेंडर बने हैं.
लेकिन उनका गांव अब भी आधुनिकता से अभी भी दूर है. झारखण्ड के सीमावर्ती गांव में रहने वाले खिलाड़ी नीलम का परिवार भी आर्थिक तंगी की मार झेल रहा है. उनके पिताजी सब्जी की खेती कर जैसे-तैसे घर खर्च चलाते हैं. वहीं उनके एक भाई प्रदीप भी गांव में रहते हैं. वहीं उनके दो बड़ी बहने भी है जिनकी शादी हो चुकी है. जब भी नीलम का उनके गांव और घर में आना होता है तो स्थिति ये रहती है कि उनके परिवार के दो सदस्यों को घर के बाहर बरामदे में सोना पड़ता है. आशा है सरकार इससे कुछ सुध लेकर नीलम के घर की स्थिति को सुधारने में उनकी मदद करेगी.