टोक्यो ओलम्पिक में 41 बाद भारत ने कांस्य पदक जीतकर भारत को शानदार तोहफा दिया था. इसके बाद भारतीय हॉकी टीम से सभी को आशा थी कि इस बार टीम विश्वकप विजेता बनेगी. ऐसे में इस विश्वकप में आशा से विपरीत फैसला हुआ है. क्योंकि बता दें भारतीय टीम इस बार क्वार्टरफाइनल में भी जगह नहीं बना पाई है. पांच दशकों से विश्वकप में चला आ रहा इन्तजार अब भी जारी रहा है और अब पेरिस ओलम्पिक 2024 से पहले कोच, टीम प्रबन्धन और हर खिलाड़ी को आत्ममंथन करना चाहिए.
विश्वकप में पांच दशकों का सबसे खराब प्रदर्शन
टीम के अभ्यास, विदेशी दौरों और सहयोगी स्टाफ के वेतन पर करोड़ों रुपया खर्च किया गया है. भुवनेश्वर और राउरकेला में लम्बी कतारों में खड़े होकर टिकट खरीदने वाले प्रशसकों के साथ टीवी के आगे नजरें बैठाए बैठे थे लेकिन उनका भी दिल टूटा है. आठ बार कि ओलम्पिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम सिर्फ एक बार साल 1975 में वर्ल्डकप जीत पाई है.
अभी तक 15 विश्वकप हो चुके है ऐसे में भारत का यह पांचवां सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. भारत चार बार नौवें स्थान पर रहा था लेकिब इस बार टूर्नामेंट में 16 टीमें खेल रही थी. भारत 1986 में 12वें, 1990 में 10वें, 2006 में 11वें स्थान पर रहा था. इसके बाद साल 1998 और 2014 में भी भारतीय टीम नौवें स्थान पर रहा था. साल 2018 में भुवनेश्वर में तेम क्वार्टरफाइनल तक पहुंची थी लेकिन इस बार तो उससे पहले ही बाहर हो गई थी.
भारतीय टीम ने क्वार्टरफाइनल से पहले खेले गए मुकाबले में न्यूजीलैंड के खिलाफ पेनल्टी कार्नर से गोल करने में कामयाब नहीं हुई थी. न्यूजीलैंड ने मैच को पेनल्टी शूटआउट में खिंचा और जीत दर्ज की थी. भारत के प्रदर्शन की सबसे कमजोर कड़ी पेनल्टी कार्नर रहा था. फ़ॉरवर्ड पंक्ति मौके नहीं बना सकी और डिफेन्स अस्त-व्यस्त नजर आया था.
बता दें इस टूर्नामेंट में भारत ने पहले मैच खेला था जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की थी. इसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ गोल रहित ड्रॉ खेला था. वहीं भारत की सभी मेहनत पर पानी फेर दिया था. बता दें भारत की इस नाकामयाबी के बारे में सभी तरह बाते हो रही है. वहीं भारत के मुख्य कोच ग्राहम रीड ने भी इसके बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.