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भारतीय हॉकी का इतिहास काफी समय पहले का है. भारतीय टीम का एक समय ऐसा था जब टीम की धाक ओलम्पिक में काफी समय से रही है. भारतीय टीम ने ध्यानचंद की अगुवाई में कई ओलम्पिक जीते हैं. भारतीय टीम ने 1928 में सबसे पहले ओलम्पिक में भाग लिया था. ऐसे में भारतीय टीम ने पहले ही हिस्से में गोल्ड पर निशाना लगाया था. इस ओलमपिक में भारतीय टीम ने शानदार मैच का प्रदर्शन किया था. इसके बाद से ही भारतीय टीम विश्व पटल पर हॉकी में धाम जमा सकी थी. वहीं भारतीय टीम ने लगातार इसमें दस ओलम्पिक में पदक जीते थे. जिसमें से सात पदक गोल्ड के ही थे.
ओलम्पिक में भारतीय टीम :-
बता दें ओलम्पिक में भारतीय टीम का शानदार प्रदर्शन रहा है ऐसे में बताते हैं कि ओलम्पिक में भारतीय टीम का सफर कैसा रहा था. हॉकी खेल के इतिहास में भारत हॉकी में सबसे अव्वल पर रहा था. हॉकी राष्ट्रीय खेल के रूप में भारत देश में खेला जाता है. ऐसे में जानते है ओलम्पिक में भारतीय टीम का सफर कैसा रहा था.
1928 एम्सटर्डम ओलंपिक :
भारत को पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक मिला। फाइनल मैच में पॉलैंड को हराया. 1932 लॉस एंजिल्स ओलंपिक लगातार 2 बार ओलंपिक चैंपियन 1936 बर्लिन ओलंपिक भारत ने बिना कोई गोल दिए 20 गोल किए. फिर सेमीफाइनल में, भारत ने फ्रांस को 10-0 से हराया जिसने फाइनल में जर्मनी के खिलाफ संघर्ष खड़ा कर दिया. उन्होंने प्रलोभन देकर ध्यानचंद को अपनी सेना में भर्ती करना चाहा. किन्तु इस सच्चे देश भक्त सिपाही को हिटलर का लालच डिगा नहीं सका. उसी समय से ध्यानचंद हॉकी के जादूगर के रूप में प्रसिद्द हो गए. हॉकी में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो मानो ऐसा लगता था कि गेंद उनके स्टिक से चिपक जाती थी.
1948 लंदन ओलंपिक
फाइनल में वेम्बली स्टेडियम में 25000 लोगों की भारी भीड़ थी जिस पर भारत ने फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से हराकर लगातार चौथा स्वर्ण पदक जीता और यह स्वतंत्र भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक था. यह मैच भारतीय टीम के स्वर्ण काल के रूप में भी जाना जाता है. इस मैच में खिलाड़ियों ने काफी उत्साह जोश के साथ भाग लिया था. बात करें भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद कि तो वह एक प्रतिभाशाली फील्ड हॉकी खिलाड़ी रहे हैं. 1928 में भारत हॉकी में विश्व चैंपियन बना था. जिसमें वह टीम में शामिल थे. उस के बाद भी भारत ने लगातार विश्व चैंपियनशिप को बरकरार रखा था. साल 1936 के बर्लिन ओलम्पिक खेलों में मेजर ध्यानचंद के शानदार खेल की बदौलत भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्णपदक जीता था. उन्होंने इस मैच में 6 अकेले गोल दागे थे.
1956 मेलबर्न ओलंपिक
फिर, फाइनल में प्रतिद्वंद्वी के रूप में भारत के अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान थे. फाइनल मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड (एमसीजी) में हुआ, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से हराकर लगातार छठा स्वर्ण पदक जीता था. वर्ष 1928 से 1956 तक का समय भारतीय फील्ड हॉकी के लिए स्वर्णकाल के रूप में जाना था. हॉकी के महान खिलाड़ियों ने भारतीय हॉकी को विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई है. और देश का नाम विश्व स्तर पर बनाया था. वे महान खिलाड़ी हॉकी खेलने के जादू को अच्छे से जानते थे और जिसने सभी के दिलों को जीता था. हॉकी खेल युवाओं द्वारा भी अच्छे से खेला जाता है. स्फूर्ति से भरा हुआ यह खेल भारत के युवाओं द्वारा भी काफी खेला जाता है. भारतीय हॉकी के क्षेत्र में लगातार कई सालों तक विश्व विजेता रह चुका है.
1964 टोक्यो ओलंपिक
1964 टोक्यो ओलंपिक 1960 के ओलंपिक में पाकिस्तान से हार और 1962 के एशिया कप में पाकिस्तान से हार की यादों के साथ, भारत यहां स्वर्ण पदक जीतने के लिए बहुत दृढ़ था. चरणजीत सिंह टीम के कप्तान थे जो टीम को आसानी से फाइनल में पहुंचाते थे. भारत ने फिर से पाकिस्तान के खिलाफ चौका लगाया, जिसे किसी न किसी तरह का फाइनल माना जाता था, जहां दोनों पक्षों के खिलाड़ी इतने मोटे तौर पर खेल रहे थे कि अंपायरों को हस्तक्षेप करना पड़ा थे. फाइनल में, भारत ने मोहिंदर लाल के पेनल्टी रूपांतरण की बदौलत पाकिस्तान को हराकर अपना सातवां स्वर्ण पदक जीता था. जो फाइनल में बनाया गया एकमात्र गोल था. भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का नाम बड़े अदब से लिया जाता है. उनके नाम हॉकी के कई रिकार्ड्स शामिल है. उन्होंने भारत को तीन बार लगातार ओलम्पिक में स्वर्ण पदक दिलाया था. इतना ही नहीं उनके नाम 1000 से ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड शामिल है. इसके कारण उन्हें द विजार्ड की उपाधि से भी सम्मानित किया गया हैं. उनके जन्मदिवस पर ही भारत में खेल दिवस मनाया जाता है.
भारतीय हॉकी इतिहास के खिलाड़ी
भारतीय हॉकी कि बात करें तो स्वर्णकाल नायक ध्यानचंद, अजीतपाल सिंह, धनराज पिल्लै, अशोक कुमार, ऊधम सिंह, बाबू निमल, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहिद, गगन अजीत सिंह, लेस्ली क्लॉडियस आदि रहे हैं. वे सभी असलियत नायक रहे हैं जिन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है.
कैसे खेलते हैं हॉकी :-
इस खेल में मैच की शुरुआत मैदान के केंद से होती है. जब एक टीम का सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी बैक के पास के द्वारा अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी को गेंद सौंपता है. फिर दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच गेंद को गोल तक ले जाने की कशमकश होती है. और जो टीम के खिलाडी दूसरी टीम के गोल पोस्ट पर गेंद को पहुंचा देते है उन्हें एक गोल पॉइंट दिया जाता है. और जो टीम एक मैच में सबसे ज्यादा गोल प्राप्त कर लेती है उसे ही विजेता बनाया जाता है. और अगर समय खत्म होने तक दोनों टीमों के कोई भी खिलाड़ी फ़ाउल करता है तो दूसरी टीम को एक एक्स्ट्रा गोल करने का मौका दिया जाता है.
फील्ड हॉकी के अलावा भी अलग-अलग तरीके होते है खेलने के जिसमें एयर हॉकी, बीच हॉकी, बॉल हॉकी, बॉक्स हॉकी, डेक हॉकी, फ्लोर हॉकी, फुट हॉकी, जिम हॉकी, मिनी हॉकी, रॉक हॉकी, पोंड हॉकी, पॉवर हॉकी, रौसेल हॉकी, स्टेकर हॉकी, टेबल हॉकी, अंडर वाटर हॉकी, यूनिसाइकिल हॉकी आदि होते है.