ध्यानचंद को लेकर हॉकी इतिहास में जाने कितनी ही कहानियां सुनाई जाती है
और उनके जन्मदिवस पर भी कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
हिटलर, महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमन जैसे दिग्गज इंसान भी उनके मुरीद थे.
लेकिन उनके बेटे अशोक ने खुलासा किया कि उनके पिताजी के
अंतिम दिन काफी तंगी और उपेक्षा और बदहाली में गुजरे हैं.
उन्होंने बताया कि जब तक पिताजी जिन्दा थे तब तक उन्हें रेलवे के
जनरल डिब्बे में सफर कराया जाता था. लेकिन जैसे ही उन्होंने
ध्यानचंद का तंगी में बिता अंतिम समय
अंतिम साँसे ली और सरकार ने हेलिकॉप्टर से उनके शव को ले जाने
कि व्यवस्था कर दी थी. 3 दिसम्बर 1979 को जब उन्होंने आखिरी सांसे
ली तब रेडियो पर यह खबर तेजी से फ़ैल गई थी. और जैसे ही यह खबर
लोगों तक पहुँचीं तब अस्पताल में उनके चाहने वालों का तांता
लगना शुरू हो गया. फिर उन्हें झांसी जहां उनका पुराना घर था
वहां ले जाना था जिसके लिए फिर हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की गई थी.
मेडल तक हो गए थे चोरी
ध्यानचंद ने भारत को ओलिंपिक में तीन बार तक लगातार स्वर्ण
पदक दिलाया था. और उनके लिए हिटलर तक ने भी ऑफर दिया था.
वह जर्मनी की टीम से आकर खेले और उन्ही की सेना में भर्ती हुए.
लेकिन हिटलर का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया था. ध्यानचंद के नाम पर
सबसे ज्यादा गोल करने का भी रिकॉर्ड है. उनके खेल खेलते समय
हर कोई उन्हें देखने में मशगुल हुआ करता था. और सब उनके हॉकी खेलने से प्रभावित थे.
ध्यानचंद को अपने जीवन के आखिरी असाल बदहाली और उपेक्षा में बिताने पड़े.
उन्हें स्वास्थ्य की अनेक समस्याएं हो गई थी. जिस तरह उनके देशवासियों
ने सरकार ने और हॉकी फेडरेशन ने उनके साथ पिछले कुछ सालों
में सुलूक किया था उसका उन्हें दुःख भी था और शायद थोड़ी कड़वाहट भी.
उनके कई मेडल तक चोरी हो गए थे. अपनी मौत से कुछ समय पहले
ध्यानचंद ने पत्रकार से कहा था कि जब मैं मरूँगा तो दुनिया शोक तो मनाएगी
लेकिन हिन्दुस्तान का एक भी आदमी एक भी आंसू तक नहीं बहाएगा.