आज का दिन पूरा भारत राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है.
इस दिवस को देश महान हॉकी खिलाड़ी ,मेजर ध्यानचंद के जयंती के रूप में मनाया जाता है.
ध्यानचंद वो खिलाड़ी है जिनके जादूई खेल का हर कोई मुरीद था.
यहाँ तक कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी मेजर ध्यानचंद के खेल का मुरीद था.
जब भी हॉकी के बात होती है तो मेजर ध्यानचंद का नाम हमेशा लिया जाता है.
हॉकी और मेजर ध्यानचंद दोनों एक दूसरे के पूरक है.
साल 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में फाइनल मैच का आनंद ले रहे
जर्मनी के चांसलर एडोल्फ हिटलर ध्यानचंद का खेल देखकर इतना प्रभावित हुए
कि उन्होंने प्रलोभन देकर ध्यानचंद को अपनी सेना में भर्ती करना चाहा.
किन्तु इस सच्चे देश भक्त सिपाही को हिटलर का लालच डिगा नहीं सका.
राष्ट्रीय खेल के जादूगर ध्यानचंद
उसी समय से ध्यानचंद हॉकी के जादूगर के रूप में प्रसिद्द हो गए.
हॉकी में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अंदाज
इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो मानो ऐसा लगता था
कि गेंद उनके स्टिक से चिपक जाती थी. ध्यानचंद अपने शुरूआती दिनों में शौकिया हॉकी खेला करते थे.
1922 में सेना की नौकरी में आने के बाद 1926 से 1948 तक
अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. उन्होंने चार सौ से ज्यादा गोल दागकर अटूट
कीर्तिमान हासिल किया. राष्ट्रीय खेल के इस खिलाड़ी ने
कई दशक पहले जो रिकॉर्ड बनाए वे अब भी कोइ नहीं तोड़ पाया है.
कई रिकार्ड्स जो नहीं टूट पाए
मेजर ध्यानचंद के नाम ऐसे कई रिकॉर्ड है जिन्हें तोड़ पाना आज
भी कईं हॉकी प्लेयर्स के लिए सिर्फ एक सपना रहा है.
वो जब हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था मानों कोई आक्रमणकारी स्टिक लेकर आ रहा हो.
वहीं मैदान के बाहर ध्यानचंद बेहद ही कोमल और शांत स्वभाव वाले थे.