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हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी माना जाता रहा है. लेकिन अब पता चला है कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं मिल पाया है. हालांकि किताबों और अन्य जगहों पर इसे ही राष्ट्रीय खेल माना जाता रहा है. लेकिन यह सच्चाई नहीं है. भारत सरकार से इस बात के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स डिसिप्लिन को बढ़ावा देने के लिए ही इसे राष्ट्रीय खेल की मान्यता मिली है.
हॉकी को सरकार ने नहीं दी राष्ट्रीय खेल की मान्यता
सभी को इस जानकारी से हैरानी होगी लेकिन यह सच्चाई है. इसके जवाब में महाराष्ट्र के धुले में स्थित एक सरकारी शिक्षक ने इस बारे में RTI भी दायर की थी. उन्होंने इसलिए यह दायर कि थी वह चाहते थे कि लोगों को पता चलें कि भारत का राष्ट्रीय खेल कौनसा है. इसके जवाब में स्पोर्ट्स मिनिस्टर ने इसका जवाब दिया था कि, ‘सरकार ने किसी भी खेल को भारत के राष्ट्रीय खेल की मान्यता नहीं दी है.’
बता दें हॉकी का इतिहास काफी पुराना है. इसमें भारत ने एक टाइम में काफी महारत हासिल कर ली थी. तभी से भारत का यह खेल देश के हर कोने में फेमस हो चुका था. इसके साथ ही हॉकी में भारत ने काफी पकड़ बनाई है. वहीं इसके साथ ही खिलाड़ियों को आगे बढाने के लिए इसे लोकप्रिय बनाया गया है.
हॉकी का वर्तमान स्वरुप में फील्ड हॉकी का खेल 19वीं सदी में ही शुरू हुआ था. आधुनिक समय में हॉकी को लोकप्रिय बनाने का श्रेय ब्रिटेन की सेना को जाता है. ब्रिटेन के कब्जे वाले देशों में जहां भी ब्रिटेश सेना की छावनियां थी वहां ब्रिटिश सैनिक हॉकी खेला करते थे. भारत के अंदर भी हॉकी का खेल ब्रिटिश सेना ने ही लोकप्रिय किया था. वर्ष 1928 से 1956 तक का समय भारतीय फील्ड हॉकी के लिए स्वर्णकाल के रूप में जाना था.
बेटन कप का नाम हॉकी की दुनिया में काफी ऊंचा है. हॉकी के सबसे पुराने टूर्नामेंट में से एक बेटन कप को आज भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में जाना जाता है. साल 1895 में इस कप की शुरुआत की गई थी. यह टूर्नामेंट देश के सबसे माने हुए टूर्नामेंट में से एक हैं. इस टूर्नामेंट का आयोजन हर वर्ष कोलकाता में होता है. इस टूर्नामेंट में भारत के शीर्ष क्लब और अन्य टीमों की हिस्सेदारी होती है.
बेटन कप का इतिहास और इसका उल्लेख
बेटन कप के अभी तक 124 सीजन आयोजित किए जा चुके हैं. पिछली बार इसका आयोजन साल 2022 में दिसम्बर में किया गया था. जिसे भारतीय नौसेना ने जीता था. इसी के साथ उन्होंने इतिहास रचते हुए पहली बार इस खिताब को अपने नाम किया था. बता दें बेटन कप के इतिहास में सबसे ज्यादा बार इस कप को मोहन बागान की टीम ने जीता है. इसी के साथ वह टीम बेटन कप के इतिहास में सबसे सफल टीम रही है.
बता दें इस टूर्नामेंट का आयोजन साल 1905 में कलकत्ता लीग ने जिम्मेदारी की थी. इससे पहले यह जिम्मेदारी भारतीय फुटबॉल संघ द्वारा ली जाती थी. इस टूर्नामेंट के वर्तमान हॉकी बंगाल द्वारा किया जाता हैं. बंगाल हॉकी द्वारा ही इस कप को शानदार तरीके से आयोजित किया जाता हैं. बेटन कप कोलकाता के मैदान में प्राकृतिक घास के ऊपर ही खेला जाता था. बीते कुछ सालों से भारतीय खेल प्राधिकरण ने मुख्य खेल स्थल बन गया है. अब साईं में मैच सिंथेटिक टर्फ पर ही खेले जाते हैं.
भारत के दिग्गज खिलाड़ी ध्यानचंद, लेस्ली, केशव दत्त और अन्य कई खिलाड़ी इसमें भाग ले चुके हैं. ये वह सितारें रह हैं जिन्होंने कई सालों तक बेटन कप में हिस्सा लिया है. दिग्गज खिलाड़ी ध्यानचंद ने अपनी लिखी आत्मकथा में भी इस कप का उल्लेख किया है. ना सिर्फ उल्लेख किया है बल्कि इसकी सराहना भी की है. उन्होंने लिखा है कि यह कप भारतीय हॉकी में विशेष स्थान रखता है.
भारत का राष्ट्रीय खेल भी हॉकी ही है और वैसे भी अब हॉकी का खेल सब जगह खेला जाता है. यह तेज खेला जाने वाला खेल है जो दो टीमों के बीच खेला जाता है. सभी खिलाड़ियों का लक्ष्य अधिक गोल कर करके दूसरी टीम को हराना होता है. हमारा देश भारत भी 1928 में हॉकी में विश्व विजेता रह चुका है और ओलम्पिक खेलों में 6 गोल्ड मैडल भी प्राप्त कर चुका है.
हॉकी का आजादी से पहले का इतिहास
वर्ष 1928 से 1956 तक का समय भारतीय फील्ड हॉकी के लिए स्वर्णकाल के रूप में जाना था. हॉकी के महान खिलाड़ियों ने भारतीय हॉकी को विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई है. और देश का नाम विश्व स्तर पर बनाया था. वे महान खिलाड़ी हॉकी खेलने के जादू को अच्छे से जानते थे और जिसने सभी के दिलों को जीता था. हॉकी खेल युवाओं द्वारा भी अच्छे से खेला जाता है. स्फूर्ति से भरा हुआ यह खेल भारत के युवाओं द्वारा भी काफी खेला जाता है. भारतीय हॉकी के क्षेत्र में लगातार कई सालों तक विश्व विजेता रह चुका है.
भारतीय हॉकी कि बात करें तो स्वर्णकाल नायक ध्यानचंद, अजीतपाल सिंह, धनराज पिल्लै, अशोक कुमार, ऊधम सिंह, बाबू निमल, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहिद, गगन अजीत सिंह, लेस्ली क्लॉडियस आदि रहे हैं. वे सभी असलियत नायक रहे हैं जिन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है.
बात करें भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद कि तो वह एक प्रतिभाशाली फील्ड हॉकी खिलाड़ी रहे हैं. 1928 में भारत हॉकी में विश्व चैंपियन बना था. जिसमें वह टीम में शामिल थे. उस के बाद भी भारत ने लगातार विश्व चैंपियनशिप को बरकरार रखा था. साल 1936 के बर्लिन ओलम्पिक खेलों में मेजर ध्यानचंद के शानदार खेल की बदौलत भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्णपदक जीता था. उन्होंने इस मैच में 6 अकेले गोल दागे थे.
फील्ड हॉकी कि संरचना और इसकी बनावट की जानकारी
इस खेल में मैच की शुरुआत मैदान के केंद्र से होती है. जब एक टीम का सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी बैक के पास के द्वारा अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी को गेंद सौंपता है. फिर दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच गेंद को गोल तक ले जाने की कशमकश होती है. और जो टीम के खिलाडी दूसरी टीम के गोल पोस्ट पर गेंद को पहुंचा देते है उन्हें एक गोल पॉइंट दिया जाता है. और जो टीम एक मैच में सबसे ज्यादा गोल प्राप्त कर लेती है उसे ही विजेता बनाया जाता है. और अगर समय खत्म होने तक दोनों टीमों के कोई भी खिलाड़ी फ़ाउल करता है तो दूसरी टीम को एक एक्स्ट्रा गोल करने का मौका दिया जाता है.
फील्ड हॉकी के अलावा भी अलग-अलग तरीके होते है खेलने के जिसमें एयर हॉकी, बीच हॉकी, बॉल हॉकी, बॉक्स हॉकी, डेक हॉकी, फ्लोर हॉकी, फुट हॉकी, जिम हॉकी, मिनी हॉकी, रॉक हॉकी, पोंड हॉकी, पॉवर हॉकी, रौसेल हॉकी, स्टेकर हॉकी, टेबल हॉकी, अंडर वाटर हॉकी, यूनिसाइकिल हॉकी आदि होते है.