क्या फुटबॉल बाकी क्षेत्रों पर भी पैर पसार पाएगा या नही, ये बात काफी सच है कि फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल और सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल भी है। पर सवाल ये है क्या ये पुरी तरह से सच है अगर पुरी दुनिया मे फुटबॉल देखा जाता है तो वर्ल्ड कप मे इतनी कम टीमे क्यूँ है? क्यूँ प्रीमियर लीग की तरह बाकी लीग इतनी फेमस नही है, क्यूँ सिर्फ यूरोप और अमेरिका के प्रांतों मे ये खेल इतना विकसित हुआ है। आज हम इसके बारे बहुत बारीकी से देखने जा रहे है।
आखिर कहाँ पीछे हो रहा है फुटबॉल संगठन
जैसे हमने पहले भी जिकृ किया है कि फुटबॉल सिर्फ यूरोप और अमेरिका के प्रांतों मे ही ज्यादा खेला जाने वाला खेल है और भी बाकी जगह जैसे- एशिया और अफ्रीका मे आज भी फुटबॉल बहुत ही पीछे है।यहां तक कि उन संघों के भीतर भी एक आधिपत्य है जिसे तोड़ना मुश्किल साबित हुआ है। 1930 में इसकी स्थापना के बाद से केवल आठ देशों ने विश्व कप जीता है।
कतर में मोरक्को का उल्लेखनीय प्रदर्शन, जहां वे विश्व कप सेमीफाइनल में पहुंचने वाले पहले अफ्रीकी देश बने, मुख्य कोच वालिद रेग्रागुई महत्वाकांक्षा और विश्वास से भरे हुए थे। तीन महीने बाद, मार्च 2023 में टैंजियर में एक दोस्ताना मैच में पांच बार के विश्व चैंपियन ब्राजील पर पहली जीत से वह आत्मविश्वास बढ़ गया।
एशिया और अफ्रीका मे कम प्रकोप
चीन और भारत शुरुआत के लिए स्पष्ट स्थान प्रतीत होते हैं। उन दो काउंटियों में रहने वाले लगभग तीन अरब लोगों के साथ, संभाव्यता की शक्ति कहती है कि विश्व मंच पर चुनौती देने के लिए उन सीमाओं के भीतर खोजने और उपयोग करने के लिए पर्याप्त प्रतिभा होनी चाहिए।पिछले दशक के मध्य में फुटबॉल में चीन के पर्याप्त वित्तीय आक्रमण ने पूरे खेल को सदमे में डाल दिया।
चीनी सुपर लीग में स्टार नामों को आकर्षित किया, लेकिन हमेशा ऐसा लगा कि यह लंबे समय तक टिक नहीं पाएगा और इसलिए यह साबित हुआ।
पढ़े : केन ने स्पर्स के लिए की शुरुआत म्यूनिख कर रहे है इंतज़ार
यूरोप की शीर्ष पांच लीगों में से किसी में भी एक भी चीनी खिलाड़ी नहीं है और निवेश का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं पड़ा है। पिछले विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने में उनकी विफलता के दौरान वियतनाम और ओमान से हार कम अंक थी, जबकि फीफा की रैंकिंग में वे 81वें स्थान पर थे।
भारत की स्थिति और भी खराब
चीन के तौर पर भारत उससे भी निचले स्थान पर स्थित है, जो बहुत ही चिंता जनक की बात है जहाँ दोनो देशो को मिलाए तो 3 बिलियन की आबादी पड़ती है।स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन, एक अंग्रेज, जिन्होंने देश को दो बार प्रबंधित किया है और पिछले सीज़न में इंडियन सुपर लीग में कोचिंग दी थी, ने मीडिया को उन व्यापक मुद्दों के बारे में बताया जो भारत को अपनी विशाल जनसंख्या को एक सफल फुटबॉल प्रणाली में परिवर्तित करने से रोक रहे हैं।
उन्होंने कहा, फरवरी में यहां हमारी टीम ईस्ट बंगाल का डर्बी मुकाबला मोहन बागान के खिलाफ था और वहां 60,000-70,000 प्रशंसक थे। मैं एक ऐसे स्टेडियम में गया हूँ जहाँ उस डर्बी खेल के लिए 110,000 दर्शक मौजूद थे। इससे पता चलता है कि भारत में फुटबॉल के प्रति कितना जुनून है।
इस देश में फ़ुटबॉल को बहुत से लोग पसंद करते हैं लेकिन अन्य बाहरी चीज़ें भी हैं जो चीज़ों को नियंत्रित करती हैं। उदाहरण के लिए, मीडिया, विज्ञापन, यह सब क्रिकेट को जाता है। लेकिन इंडियन सुपर लीग इस स्थिति मे काफी सुधार किया और खिलाडियों को भी ज्यादा अच्छे खासे पैसे मिलते है, तो उन्हे बाहर के लीग मे जाने की स्थिति नही बनती है।