इस बात में कोई शक नहीं है की भारत में शतरंज को एक बड़ी पहचान विश्वनाथ आनंद ने दिलाई है ,
आनंद ने अपने करियर के दौरान काफी चीज़े हासिल की है , खास बात ये है की उन्होंने अभी भी विश्व
के टॉप 10 खिलाड़ियों की लिस्ट में अपनी जगह बनाई हुई है | आनंद इस वक्त के भारतीय युवा
खिलाड़ियों को भी पूरी तरह सपोर्ट करते है और चाहते है की जल्द ही इन खिलाड़ियों में से आगे
जा कर कोई भी विश्व चैम्पीयन जरूर बने | इस लेख में हम आपको भारत के चेस लेजन्ड कहे जाने
वाले आनंद के बारे में सब कुछ बताएंगे |
6 वर्ष की उम्र में पहली बार सीखा था शतरंज
विश्वनाथ आनंद का जन्म तमिल नाडु के मयिलादुतुरै में हुआ था इसके बाद उनका परिवार चेन्नई
आ गया था और यही पर आनंद पले-बढ़े |आनंद के पिता कृष्णमूरथी विश्वनाथन बिहार के जबलपुर
में दक्षिणी रेलवे के जनरल मैनेजर थे और उनकी माँ सुशील एक गृहिणी थी | आनंद अपने माता-पिता
के सबसे छोटे बेटे है , वो अपने भाई से 13 साल और बहन से 11 साल छोटे है | आनंद ने 6 वर्ष की
उम्र में अपनी माँ से पहली बार शतरंज खेलना शुरू किया था पर उन्होंने मनीला में इस खेल की
पेचीदगियों को सीखा जहां वो 1978 से 1980 तक अपने परिवार के साथ रहे थे क्यूंकि उनके पिता
को फिलिपिन नैशनल रेल्वे द्वारा कान्ट्रैक्ट मिला था |
आनंद ने धुंआधार तरीके से की थी शतरंज की शुरुआत
शतरंज की दुनिया में आनंद के करियर की शुरुआत काफी शानदार तरीके से हुई थी , उन्हें राष्ट्रीय सफलता भी जल्दी मिल गई थी , उन्होंने 1983 में 14 वर्ष की उम्र में 9/9 के बेहतरीन स्कोर के साथ सब-जूनियर चैम्पीयनशिप जीती थी इसके बाद 1984 में उन्होंने कोयंबटूर में एशियाई जूनियर चैम्पियनशिप जीती और इंटरनेशनल मास्टर का नॉर्म भी हासिल कर लिया , इसके तुरंत बाद ही उन्होंने 26 वें शतरंज olympiad में हिस्सा लिया और भारतीय नैशनल टीम में अपना डेब्यू किया | उस olympiad में आनंद ने 11 गेमों में 7.5 अंक हासिल किए और अपना दूसरा IM नॉर्म भी हासिल कर लिया | साल 1985 में आनंद IM बनने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए थे , उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 15 वर्ष थी |
18 वर्ष की उम्र में मिला पद्म श्री
इसके बाद आनंद ने हांगकांग में लगातार दूसरी बार एशियन जूनियर चैम्पीयनशिप जीती और 16 वर्ष की उम्र में नैशनल शतरंज चैम्पीयन बन गए इसके बाद भी उन्होंने ये टाइटल दो बार और जीता था , साल 1987 में आनंद विश्व जूनियर शतरंज चैम्पियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने , 1988 में जब वो 18 वर्ष के हुए तो उन्होंने शक्ति फाइनेंस इंटरनेशनल शतरंज टूर्नामेंट जीता और भारत का पहला ग्रंड्मास्टर बन कर इतिहास रच दिया , इस टूर्नामेंट में आनंद की सबसे बड़ी जीत रूस के ग्रंड्मास्टर एफिम गेलर के खिलाफ हुई थी , इसके बाद आनंद को 18 वर्ष की उम्र में ही पद्म श्री अवॉर्ड से नवाजा गया था |
1993 में पहली बार हुए candidates टूर्नामेंट के लिए क्वालफाइ
1993 में आनंद अपने पहले candidates टूर्नामेंट के लिए क्वालफाइ हुए जिसमें वो अपना पहला मैच भी जीत गए थे पर वो कॉर्टर फाइनल में अनटोली कार्पोव से हार गए थे | 1994-1995 तक आनंद और गाटा काम्स्की ने FIDE और PCA की विश्व championships को पूरी तरह से डामनैट किया , FIDE साइकिल में आनंद कॉर्टर फाइनल के दौरान काम्स्की से अपना मैच हार गए थे |
विश्व चैम्पीयनशिप में रहे अपराजित
2005 में हुई विश्व चैम्पीयनशिप के बाद आनंद 2007 की विश्व चैम्पीयनशिप के लिए क्वालफाइ हो गए थे जिसमें 8 खिलाड़ियों के साथ 12 सितंबर से 30 सितंबर तक मेक्सिको में डबल राउंड टूर्नामेंट खेला गया था | आनंद इस टूर्नामेंट में एक टॉप रैंक खिलाड़ी थे और सभी के पसंदीदा खिलाड़ी भी बन गए थे जिनको लोग जीतते हुए देखना चाहते थे | राउंड 1 में ड्रॉ के बाद आनंद ने दूसरे राउंड में ब्लैक मोहरों के साथ Aronian को मात दी | चौथे राउंड के बाद आनंद और क्रैमनिक 2.5 के स्कोर के साथ लीड पर थे पर अगले तीन राउंड में आनंद ने लगातार जीतों के साथ खुद को अलग करते हुए एक मात्र लीड बना ली थी इसके बाद 10 वें राउंड में उन्होंने क्रैमनिक के साथ एक मैच ड्रॉ किया था जिसके बाद 1.5 के अंकों के साथ उनकी लीड और भी ज्यादा बढ़ गई थी |
2007 में बने भारत के पहले विश्व चैम्पीयन
13 वें राउंड में आनंद ने ग्रीसचूक के खिलाफ एक बेहतरीन गेम खेली और अपनी लीड बनाए रखने के लिए उनको भी मात दी | फाइनल राउंड में पीटर लेको के साथ 20 चालों के बाद मैच ड्रॉ कर के विश्व चैम्पीयनशिप को अपने नाम कर लिया था | इस टूर्नामेंट में आनंद पूरी तरह अपराजित रहे | इस जीत के साथ आनंद टूर्नामेंट में विश्व चैम्पीयन का खिताब जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गए थे , टाइटल के साथ ही आनंद को $390,000 की पुरस्कार राशि भी मिली थी |आनंद ने 2008 में जर्मनी में आयोजित हुई विश्व चैम्पीयनशिप के दौरान क्रमणिक के खिलाफ अपने टाइटल का बचाव किया था , इस टूर्नामेंट में जो भी खिलाड़ी 12 मैचों में पहले 6.5 अंक बनाता वो विजेता होता , आनंद ने 11 गेमों में 6½ अंक बना कर जीत हासिल की ,10वीं गेम के बाद आनंद 6-4 से लीड में थे और उन्हें सिर्फ एक ड्रॉ मैच चाहिए था जीतने के लिए | 11वीं गेम में क्रमणिक ने sicilian डिफेन्स के साथ शुरुआत की थी , जब दोनों खिलाड़ियों ने रानी की अदला बदली की तब 24 चालों के बाद क्रमणिक ने ड्रॉ की पेशकश की क्यूंकि एंडगेम में जीतने के लिए उनके पास कोई मौका नहीं था |
2013 में गवाया अपना टाइटल
साल 2010 और 2012 में भी आनंद ने अपने खिताब को शानदार तरीके से defend किया पर 2013 में चेन्नई में हुई विश्व चैम्पीयनशिप में वो मैग्नस कार्लसन से हार गए थे | दोनों के मैच में पहली चार गेम ड्रॉ हुई थी , जिसके बाद कार्लसन पाँचवीं और छठी गेम जीते इसके बाद 7वीं और 8 वीं गेम भी ड्रॉ हुई और 9 वीं गेम कार्लसन ने जीती | 10 वीं गेम ड्रॉ हुई और कार्लसन नए विश्व चैम्पीयन बन गए | इस बात में कोई दो राह नहीं है की विश्वनाथ आनंद भारत के शतरंज Legend है क्यूंकि उन्होंने शतरंज को भारत में एक नई पहचान दिलाई है और आज देश के हर कोने में शतरंज खेला जाता है और इसके कई टूर्नामेंट का भी आयोजन किया जाता है ताकि बच्चें भी अपनी स्किलस को और बढ़ा सके और फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर जा कर मुकाबला करे |
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