राजस्थान में झुंझूनू के खेतड़ी उपखंड का रवां गांव की पहचान हॉकी
वाले गांव के रूप में बनी हुई है. क्योंकि गांव से कई युवा राष्ट्रीय
स्तर पर खेल चुके हैं. हॉकी खेल कोटे से गांव के एक युवक ने
नौकरी भी प्राप्त की है. गांव की गलियों में बच्चे क्रिकेट बेट लिए
नहीं मिलेंगे बल्कि हॉकी की स्टिक के साथ दौड़ते-खेलते मिलेंगे.
हॉकी के प्रति बच्चों-युवाओं में दीवानगी की शुरुआत 2007 में हुई थी.
झुंझुनू के रवां गांव में हर कोई खेलता है हॉकी
इससे पहले इस गांव में हॉकी को कोई पहचान नहीं मिली थी.
इस साल शारीरिक शिक्षक उमेश कुमार स्वामी ने राजकीय उच्च
माध्यमिक विद्यालय के छात्र-छात्राओं को हॉकी खिलाना शुरू किया.
देखते ही देखते स्कूली खेलों में खिलाड़ियों ने परचम लहराना शरू कर दिया.
इसके बाद यही बच्चे स्टेट और नेशनल तक में सलेक्ट हो गए है.
मेडल लाने वाले गांव में जश्न हुआ तो दूसरे बच्चों ने भी हॉकी को ही
अपना खेल बना लिया. यानी 15 साल के दौरान रवां गांव हॉकी
की नर्सरी बन गया है और राष्ट्रीय स्तर तक इस गांव के
खिलाड़ियों ने अपने नाम और गांव का परचम लहराया है.
छात्र नंगे पैर तक खेलने को मजबूर हुए लेकिन एक मन में जिद्द
और जुनून था कि गांव में राष्ट्रीय खेल हॉकी के खिलाड़ियों को तैयार
करने की. शुरुआत में छात्रों को भी खेल अटपटा लगा लेकिन लगातार
अभ्यास और मेहनत रंग लाई और 2007 में ही जिला स्तर पर प्रथम
और गांव की पूरी टीम राज्य स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया. रवां गांव
की छात्र-छात्राओं ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी धाक जमाई है.
अभी तक 14 छात्र और दो छात्राएं राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हैं जबकि
2007 से पहले हॉकी की नहीं थी पहचान
सैकड़ों छात्र राज्य स्तर पर खेल चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर छात्राओं में
ममता अवाना और पूजा मीना खेल चुकी है. छात्रों में कपिल, दीपक,
विक्रम, मोहित, पवन, हरीश, भूप सिंह, गौतम, अजय, पुष्पेन्द्र, रवि दत्त, सरजीत और शुभम ने खेला है.