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फील्ड हॉकी का इतिहास बहुत पुराना है. इसमें उपयोग में आने वाले उपकरण भी काफी सालों से चलते आ रहे हैं. पहले काफी सालों में उपकरणों में जरुर बदलाव आया है लेकिन उनका उपयोग वहीं है. ऐसे में हॉकी में स्टिक और बॉल का उपयोग काफी समय से किया जा रहा है. बता दें भारत में भी हॉकी का प्रादुर्भाव काफी पुराना है. हाल ही में भारत ने 15वां विश्वकप भी आयोजित किया था. बता दें अब तक भारत ने सिर्फ एक बार विश्वकप जीता है. हॉकी खेल में गेंद का भी बहुत महत्व है. स्टिक ही नहीं हॉकी खेल में गेंद का होना भी इसमें बहुत जरूरी है. जितना पुराना यह खेल है उतना ही पुराना इसके उपकरणों का इतिहास भी है.
हॉकी खेल में गेंद का इतिहास
वहीं हॉकी खेल की शुरुआत आज से लगभग चार हजार वर्ष पर्व मिस्त्र में हुआ था. हॉकी खेल में शुरुआत से लेकर आजतक बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिले है. इसमें फील्ड हॉकी में खिलाड़ियों संख्या भी रिलेटेड है. आज हम जिस हॉकी खेल रहे हैं पहले ये इस तरीके से नहीं खेला जाता था. ऐसा कहा जाता है कि हॉकी की शुरुआत भारत देश में हुई थी हॉकी को पहली बार भारत में ही खेला गया था. लेकिन इस बार वर्तमान समय में हॉकी को पूरे विश्व में पहचान मिली और इसे अब हर अन्तर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेला जाता है.
हॉकी के वर्तमान के नियम रूल्स कमेटी द्वारा बनाए गए हैं जो वर्ल्ड गवर्निंग बॉडी ऑफ हॉकी, फेडरेशन इंटरनेशनल डी हॉकी या FIH इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ हॉकी द्वारा ही बनाए जाते हैं. हॉकी के कुछ बेसिक बातों की बात करें तो इसमें दो टीमें खेलती है. सारे खिलाड़ी हॉकी स्टिक और एक गेंद के साथ इस खेल को खेलते है.
गेंद की क्या होता है आकर और वजन
बता दें हॉकी के खेल में उपयोग में लाई जाने वाली गेंद की बनावट और वजन के बारे में जानकारी देते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं हॉकी के गेंद के बारे में कुछ जानकारी बातें जिन्हें जानना हॉकी के खिलाड़ियों को जानना जरूरी है. बता दें फील्ड हॉकी में गेंद की महत्ता काफी जरूरी है. यह ठोस प्लास्टिक की बनी होती है. गेंद के आयाम क और इसकी परिधि को भी एक स्टैण्डर्ड डिजाईन में बनाया जाता हैं.
परिधि 224 मिमी से 235 मिनी होती है. वहीं इस बॉल का वजन 156 ग्राम से लेकर 163 ग्राम तक होता है. गेंद का रंग सफेद होता है वहीं इनडोर और आउटडोर प्रतियोगता के लिए यह रंग समान होता है. फील्ड हॉकी बॉल के प्रकार के बारे में बात करें तो यह तीन प्रकार की होती है. पहली सफेद हॉकी बॉल तो दूसरी चिकनी हॉकी बॉल और तीसरी इंडोर हॉकी बॉल होती है.
बात करें टीम के गोलकीपर की तो वह ऐसा खिलाड़ी होता है जो अपने शरीर को गेंद से छू सकता है और गोलकीपर हर समय हेलमेट, बॉडी आर्मर, कीकर और लेग गार्ड जैसे सुरक्षा के उपकरण भी होते है और वह टीम से हटकर अलग रंग की जर्सी पहनता है. गेंद को हर कोई खिलाड़ी नहीं छू सकता है. अगर कोई और खिलाड़ी इसे टच करता है तो फ़ाउल माना जाता है. वहीं अगर गोलकीपर इसे छूता है तो इसे फोउल नहीं माना जाता है. बता दें हॉकी के खेल में गेंद का काफी महत्व होता है.
हॉकी की गेंद के प्रकार :
वहीं पहले हॉकी बॉल कि बात करें तो यह फील्ड हॉकी में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे फेमस बॉल होती है. इसका उपयोग साल 1980 से होता आ रहा है. इस गेंद की सतह पर गड्डे होते है तो इसकी गति और स्थिरता को बढ़ाते है. इसे आदर्श गेंद माना जाता है. यह गेंद घास में और फर्श पर अच्छे से काम नहीं करती है.
वहीं दूसरे स्थान पर आने वाली बॉल चिकनी बॉल होती है. ये बॉल आदर्श नहीं होती है. वैसे पहले स्थान पर आने वाली गेंद सही नहीं होती है इसलिए यह गेंद अस्तित्व में आई थी. वहीं ग्रास हॉकी बॉल भी इसे माना जाता है. यह पानी में और समतल स्थर पर भी खेला जा सकता है.
अब तीसरे स्थान पर आने वाली बॉल है इंडोर हॉकी बॉल जो काफी हल्की होती है. इसमें अंदर का भाग खोखला होता है. शुरुआत में प्रशिक्षण के तौर पर इस गेंद का उपयोग किया जाता था. चार साल पहले से ही इन गेंदों का प्रयोग किया जाता रहा है. इसके साथ ही अब उपकरणों में भी संसोधन होता आ रहा है. पहली बार साल 1826 में ऑस्ट्रेलिया में इस गेंद का निर्माण किया गया था. भारत में बांस और रबर की गेंदे बनाई जाती रही थी. पहले गेंद को साधारण तरीके से बनाया जाता था. जिसे ऊन और साधारण वस्तुओं से बनाया जाता था. लेकिन इसके बाद इसकी आदर्श स्थिति को बनाया गया था. जिसका ही उपयोग किया जाता रहा हैं.
बता दें हॉकी की गेंद को विशेष रूप से बनाया जाता रहा है. ऐसे में हॉकी मैदान के अनुरूप ही गेंद को बनाया जाता रहा है. हॉकी के खेल में बड़ी स्फूर्ति और सजगता रखनी होती है. ओलम्पिक और विश्वकप खेलों में पानी आधारिक खेल की आवश्यकता होती है जिससे मैदान में खेलने में आसानी होती है. और खिलाड़ियों को खेलने के लिए काफी सुविधा भी होती है. ज्यादा पानी वाले पिचों पर छोटे फाइबर और गीली टर्फ घर्षण को कम करते हैं और उस गति को बढाते है जिस से खिलाड़ियों को खेलने में आसानी होती है.
हॉकी फील्ड की बनावट और आकर
बाकी बात करें हॉकी के नियम की तो वो फुटबॉल से ही समानता रखते हैं. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी के खेल के नियम की जिम्मेदारी अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ की होती है. हॉकी खेल में एक समय सिर्फ हमारे देश भारत का बोलबाला था और हॉकी में भारत का परचम हर जगह लहरा रहा था. भारत में इस खेल को जन-जन तक पहुँचाने का काम किया जा रह है.