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भारतीय हॉकी टीम ने पिछले कई सालों से अपना बोलबाला दुनिया में फैलाया हुआ है. ऐसे में भारतीय हॉकी को दुनिया के सामने लाने का श्रेय कई खिलाड़ियों को जाता है. जिसमें मेजर ध्यानचंद और अन्य कई भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने इसमें सहयोग दिया है. ऐसे में बताते हैं आपको पांच भारतीय खिलाड़ियों के बारे में जिन्होंने भारतीय खेल को आगे बढ़ाया है. एक समय था जब फील्ड हॉकी में भारतीय टीम का वर्चस्व पूरी दुनिया में हुआ करता था. यही वजह थी कि दूसरे दश के खिलाड़ी भी भारतीयों से प्रशिक्षण लेना चाहते थे. भारत का दबदबा एक समय में काफी था.
पांच भारतीय खिलाड़ियों ने दुनिया में कमाया नाम
19 के दशक में खिलाड़ियों का बोलबाला काफी था. कई खिलाड़ियों का अथक प्रयास रहा है तब जाकर भारतीय टीम उस मुकाम तक पहुंच सकी थी. हालांकि इसके बावजूद हर टीम में कोई एक ऐसा खिलाड़ी जरुर होता है जो शानदार प्रदर्शन के बलबूते टीम की पहुंच को बढ़ाता है. ऐसे में हम आपको पांच भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं. आइए जानते है किन खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया है.
भारतीय हॉकी इतिहास के पांच खिलाड़ियों के बारे में हम बताने जा रहे हैं.
मेजर ध्यानचंद :
हॉकी की दुनिया में जादूगर के नाम से मशहूर हुए ध्यानचंद आज हर घर में लोकप्रिय है. उनकी ख्याति देश में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी है. उन्होंने देश को कई ओलम्पिक पदक जीताए है और कई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व भी किया है. उनका नाम हॉकी के महान हॉकी खिलाड़ियों में शुमार होता है. हॉकी और मेजर ध्यानचंद एक दूसरे के पूरक ही है. ध्यानचंद को हॉकी के प्रति इतना जूनून था कि एक बार हॉलैंड के साथ फाइनल मुकाबले में103 डिग्री बुखार होने के बावजूद वो खेल खेला और भारत को विजेता बनाया.
मेजर ध्यानचंद हॉकी के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है जिसे भूल पाना किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल ही है. ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने लगातार तीन बार भारत को स्वर्ण पदक जीताया था. भारत में मेजर ध्यानचंद के नाम से कई स्टेडियम और जगहों के नाम है. वहीं उनके नाम से खेल का सर्वोच्च सम्मान भी खिलाड़ियों को दिया जाता है. वहीं उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में सरकार ने इस दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है.
बलबीर सिंह का टीम में चयन तब हुआ था जब भारतीय टीम ओलम्पिक खेलने जा रही थी. साल 1948 में ओलम्पिक का आयोजन हुआ था उसके बाद टीम का चयन हुआ था. तब भारतीय टीम में नया खिलाड़ी शामिल हुआ था उसका नाम बलबीर सिंह था. उनके खेल से हर कोई प्रभावित था. उन्होंने उस ओलम्पिक के दो मैचों में ही आठ गोल दाग दिए थे. स्वतंत्र भारत में पहला ओलम्पिक आयोजित हुआ था. तब भारतीय टीम ने हिस्सा लेते हुए इतिहास रच दिया था. और पहला स्वतंत्र स्वर्ण पदक भारतीय टीम ने अपने नाम किया था. उसमें बलबीर सिंह का काफी योगदान रहा था.
बलबीर सिंह सीनियर :
मोहम्मद शाहिद :
भारतीय हॉकी के इतिहास में एक और खिलाड़ी ऐसे हैं जिनको भूल पाना किसी भी हॉकी फैन्स के लिए नामुमकिन होगा. मोहम्मद शाहिद वो नाम है को देश के शानदार खिलाड़ियों में शुमार है. हॉकी खिलाड़ी में उनके जैसा कोई दूसरा खिलाड़ी नहीं हो सकता है. साल 1979 में उन्होंने जूनियर टीम के लिए डेब्यू किया था. उन्होंने अपने खेल से इतना प्रभाव छोड़ा था कि एक साल बाद ही वह भारतीय टीम में चयनित हो गए थे. भारतीय टीम में उनका चयन आक्रामक खिलाड़ी के रूप में हुआ था. जब मोस्को में ओलम्पिक हुआ था तब वह विजेता टीम के सदस्य भी रहे थे. आखिरी भी ओलम्पिक में स्वर्ण पदक उनके कार्यकाल में ही आया था. उसके बाद से भारतीय टीम ने ओलम्पिक में स्वर्ण नहीं जीता है.
धनराज पिल्लै :
भारतीय हॉकी में एक ऐसा नाम जो आज के हर युवा के जुबान पर रहता है. आधुनिक हॉकी में धनराज का नाम बड़े शान से लिया जाता है. भारतीय हॉकी का सुपरस्टार धनराज वो खिलाड़ी है जिन्होंने भारतीय टीम को अहम मौकों पर जीत दिलाई है. भारतीय टीम के पूर्व कप्तान धनराज ने टीम में साल 1989 में जगह बनाई थी. मोहम्मद शाहिद के बाद धनराज ने ही उनकी जगह को सम्भाला था. बड़े आक्रमक तरीके से खेलने के कारण धनराज ने जल्द ही ख्याति प्राप्त कर ली थी.
धनराज का नाम बड़े-बड़े खिलाड़ियों में लिया जाने लगा था. उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी जाना जाने लगा था. उनकी ही कप्तानी में भारतीय टीम ने एशियन गेम्स में अपना स्वर्ण पदक जीता था. इसके बाद उन्होंने एशिया कप जीताने में भी अहम भूमिका निभाई थी.
पीआर श्रीजेश :
भारतीय गोलकीपर श्रीजेश की कहानी काफी संघर्षभरी रही है. उन्होंने साल 2006 में डेब्यू किया था. दक्षिण एशियाई खेलों के दौरान उन्हें सबसे पहले खेलने का मौका मिला था. इसके बाद साल 2008 में जूनियर एशिया कप में भारत की जीत में उनकी अहम भूमिका था. और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर के खिताब से भी नवाजा गया था. इसके छह साल बाद वह भारतीय टीम के सदस्य तो रहें लेकिन उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिल सके थे. इसके बाद साल 2011 में एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में उन्होंने फिर खुद को सही साबित किया जिसके बाद उनकी टीम में जगह पक्की हुई थी.
साल 2013 में एशिया कप में उन्हें सबसे सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर के रूप में चुना गया था. वह लगातार दो बार FIH द्वारा सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का खिताब जीतने वाले खिलाड़ी भी बने हैं.