शतरंज के बोर्ड पर रानी सबसे ज्यादा डर पैदा करने वाला मोहरा है पर एक दुर्लभ किताब में ये
बताया गया है की रानी हमेशा से ऐसी नहीं थी , आज वो किसी भी दिशा में और कितनी भी दूरी
तक जा सकती है पर एक समय पर वो ऐसा मोहरा थी जो सीमित चाल ही चल सकती थी , यानि वो
एक कमजोर मोहरा थी | सुम्मा कोलेशनम, 13 वीं शताब्दी के फ्रांसिस्कन धर्मशास्त्री जॉन ऑफ वेल्स
द्वारा शतरंज के नियमों के लिए शुरुआती स्पष्टीकरणों में से एक शामिल किया गया |
एक दिशा में चल सकती थी रानी
जॉन के मुताबिक रानी तिरछी दिशा में एक समय में केवेल एक ही दिशा जा सकती थी , इसाबेला I के
शंसनकाल के दौरान मॉडर्न रानी की स्थिति 15वीं शताब्दी के स्पेन की हो सकती है वो भी महिला शासन
की वास्तविकता के लिए एक संकेत में। सुम्मा कोलेशनम की नीलामी 26 जनवरी को लंदन में फोरम
ऑक्शन में होने जा रही है इसके £18,000-£22,000 प्राप्त होने की उम्मीद है | शतरंज के शुरुआती
संदर्भ 7 वीं शताब्दी की शुरुआत से और मध्य फारसी और संस्कृत में दिखाई दिए |
समय के साथ बदली रानी की चाल
शतरंज का सबसे पुराना ज्ञात मैनुअल दो शताब्दियों बाद अरबी में लिखा गया था, गेम के प्रारंभिक
रूपों में एक वजीर था , जो इस्लामी राज्यों में एक महत्वपूर्ण अधिकारी था | ये समय के साथ रानी बन
गई , दिशा और दूरी के साथ ये धीरे-धीरे बदलने लगी | फ्रांसीसी इतिहासकार मर्लिन यालोम जिनकी
2019 में मृत्यु हो गई थी उन्होंने भी इस सिद्धांत का समर्थन किया था की शतरंज में रानी के स्थिति
वास्तविक दुनिया में उनकी बढ़ती शक्ति से संबंधित थी|
महिला शासन से जुड़ा है ये विकास
उन्होंने लिखा था “15वीं शताब्दी से पहले कुछ महिला शासक थी जिनके नाम निश्चित रूप से गेम से
जुड़े हो सकते है , महिला शासन की वास्तविकता निस्संदेह शतरंज की रानी के विकास से जुड़ी हुई थी |
प्लेयर के बोर्ड के दूर जाने से प्यादों को रानी के रूप में पदोन्नत किया जा सकता है और इसे क्वीनिंग
के रूप में जाना जाता है।सबसे पुरानी ओपनिंग में से एक “क्वीन्स गैम्बिट” हाल ही में आन्या टेलर-जॉय
की सीरीज में देखी गई थी , इसका उल्लेख पहली बार 1490 में किया गया था जिसमें सफेद पक्ष रानी
के एक प्यादे का बलिदान देकर लाभ लेता है |