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राष्ट्रीय खेल हॉकी के लिए मेजर ध्यानचंद के काम किसी जादूगर से कम नहीं है. उन्होंने भारतीय हॉकी में अपने नाम को ऊंचाईयों पर पहुंचाया है. इसके साथ ही हॉकी के खेल में भारत की विश्वपटल पर अमिट छाप छोड़ी है. ध्यानचंद झांसी के निवासी थे लेकिन उनका नाता मेरठ में भी काफी ख़ास था. पंजाब रेजिमेंट में उन्होंने यह 12 वर्ष नौकरी की थी. इसी के साथ उनकी इस शहर से काफी सारी यादें है जो आज भी शहर वासियों को भुलाए नहीं भूलती है.
मेरठ निवासियों में जादूगर ध्यानचंद के लिए विशेष प्रेम
बाम्बे बाजार में पंडित सोहनलाल हॉकी के यहाँ आज भी ध्यानचंद उर्फ़ दद्दा की यादें ताजा है. ध्यानचंद पर एक फिल्म भी बनने जा रही हैं जिसकी शूटिंग झाँसी से ही शुरू होने वाली हैं. इसी बायोपिक के लिए जो हॉकी स्टिक झांसी ले जाई गई है वो स्टिक सोहनलाल के पास से ही ले जाई गई है. इसी स्टिक से 1952 में ध्यानचंद ने ऐतिहासिक विक्टोरिया पार्क में जापान की टीम को करारी शिकस्त दी थी.
सोहनलाल शर्मा के बेटे अरुण शर्मा बताते हैं कि मेजर ध्यानचंद आम जिन्दगी में जितने सरल और नर्म थे उतने ही मैदान में उतरते समय वह आक्रामक रवैये में आ जाते थे. वर्ष 1956 ने दद्दा सेना से सेवानिवृत हुए थे. झांसी जाते समय मेरठ निवासियों ने ध्यानचंद का फूलों से विदाई समारोह किया था. उनके पास ध्यानचंद की कई दुर्लभ तस्वीरें आज भी रखी हुई है जो पुराने जमाने की याद ताजा करती है.
ऐसे कई किस्से है जिनसे पता चलता है की ध्यानचंद को यूंही भारत का सर्वश्रेष्ठ हॉकी प्लेयर नहीं बनाया जाता है. ध्यानचंद को हॉकी हो चाहे सेना की नौकरी उन्होंने हर तरीके की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया था. 1922 में ध्यानचंद बतौर सैनिक सेना में भर्ती हुए थे और मेजर बनकर सेना से रिटायर्ड हुए थे. हॉकी के खिलाड़ी के रूप में हिटलर भी उनका मुरीद था.
तभी जर्मनी के एक खिलाड़ी ने ध्यानचंद को जोरदार धक्का मारा जिससे उनके दांत तक टूट गए थे. फिर भी उन्होंने अपने दर्द की परवाह किए बिना खेल खेलते रहे. उस मैच के दौरान इतना ही नहीं उन्होंने फिसलने के डर से जूते भी उतार दिए थे और उनका साथ देते हुए उनके भाई रूप सिंह ने भी जूते उतार दिए थे ताकि फिसले नहीं. इसके बाद रूप सिंह ने और ध्यानचंद ने एक के बाद एक गोल कर भारत को जर्मनी के ऊपर जीत दर्ज कराई थी.
राष्ट्रीय खेल के जादूगर ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद हॉकी के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है जिसे भूल पाना किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल ही है. ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने लगातार तीन बार भारत को स्वर्ण पदक जीताया था. भारत में मेजर ध्यानचंद के नाम से कई स्टेडियम और जगहों के नाम है. वहीं उनके नाम से खेल का सर्वोच्च सम्मान भी खिलाड़ियों को दिया जाता है. वहीं उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में सरकार ने इस दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. जर्मनी के खिलाफ एक मैच में भारत का पलड़ा भारी था.
खास बात यह है कि जिस हॉकी से ध्यानचंद सबसे ज्यादा प्यार करते थे. और जिसे उन्होंने खूब गोल दागे वह आज भी सोहनलाल शर्मा ने अपने पास महफूज रखी हुई थी. इतना ही नहीं यही स्टिक अभी बॉलीवुड की फिल्म में भी नजर आने वाली है जो एक बहुत गर्व की बात है. पुराने समय के किस्सों को याद करते हुए सोहनलाल शर्मा के बेटे अरुण शर्मा बताते है कि जब तक भी ध्यानचंद मेरठ रहे वह रोज सोहनलाल की दुकान पर बैठा करते थे.
ध्यानचंद वो खिलाड़ी है जिनके जादूई खेल का हर कोई मुरीद
यहाँ तक कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी मेजर ध्यानचंद के खेल का मुरीद था. जब भी हॉकी के बात होती है तो मेजर ध्यानचंद का नाम हमेशा लिया जाता है. हॉकी और मेजर ध्यानचंद दोनों एक दूसरे के पूरक है. साल 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में फाइनल मैच का आनंद ले रहे जर्मनी के चांसलर एडोल्फ हिटलर ध्यानचंद का खेल देखकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने प्रलोभन देकर ध्यानचंद को अपनी सेना में भर्ती करना चाहा. किन्तु इस सच्चे देश भक्त सिपाही को हिटलर का लालच डिगा नहीं सका.
ध्यानचंद हॉकी के जादूगर के रूप में प्रसिद्द हो गए. हॉकी में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अंदाज
इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो मानो ऐसा लगता था कि गेंद उनके स्टिक से चिपक जाती थी. ध्यानचंद अपने शुरूआती दिनों में शौकिया हॉकी खेला करते थे. 1922 में सेना की नौकरी में आने के बाद 1926 से 1948 तक अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. उन्होंने चार सौ से ज्यादा गोल दागकर अटूट कीर्तिमान हासिल किया. राष्ट्रीय खेल के इस खिलाड़ी ने कई दशक पहले जो रिकॉर्ड बनाए वे अब भी कोइ नहीं तोड़ पाया है.
कई रिकार्ड्स जो नहीं टूट पाए
मेजर ध्यानचंद के नाम ऐसे कई रिकॉर्ड है जिन्हें तोड़ पाना आज भी कईं हॉकी प्लेयर्स के लिए सिर्फ एक सपना रहा है. वो जब हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था मानों कोई आक्रमणकारी स्टिक लेकर आ रहा हो. वहीं मैदान के बाहर ध्यानचंद बेहद ही कोमल और शांत स्वभाव वाले थे.
जर्मनी के खिलाफ एक मैच में भारत का पलड़ा भारी था बिना जूते के खेले थे जर्मनी से मुकाबला तभी जर्मनी के एक खिलाड़ी ने ध्यानचंद को जोरदार धक्का मारा जिससे उनके दांत तक टूट गए थे. फिर भी उन्होंने अपने दर्द की परवाह किए बिना खेल खेलते रहे. उस मैच के दौरान इतना ही नहीं उन्होंने फिसलने के डर से जूते भी उतार दिए थे और उनका साथ देते हुए उनके भाई रूप सिंह ने भी जूते उतार दिए थे ताकि फिसल नहीं सके.
इसके बाद रूप सिंह ने और ध्यानचंद ने एक के बाद एक गोल कर भारत को जर्मनी के ऊपर जीत दर्ज कराई थी. मेजर ध्यानचंद हॉकी के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है जिसे भूल पाना किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल ही है. बात करें भारत के हॉकी के जादूगर के नाम से मशहूर खिलाड़ी ध्यानचंद की तो वह किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उन्हें भारत में हर कोई हॉकी के जादूगर के नाम से जानता है. विश्व में सबसे ज्यादा हॉकी में गोल करने वाले खिलाड़ी ध्यानचंद तीन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीते हैं. साथ हे उन्होंने इंटरनेशनल मैच में 570 गोल भी अपने नाम किए हैं.