मुक्केबाजों की कहानी हमेशा से ही प्रेरणादायक रही है पर आज हम आपको एक ऐसे एथलिट के बारे में बताएंगे,
जिन्होनें मुक्केबाजी से अपने करियर की शुरुआत की ओर भारोत्तोलन यानि की वेटलिफ्टिंग में गोल्ड मेडल जीता।
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य के सुदूर पूर्वी कामेंग जिले के एक किसान के घर जन्मे सैम्बो,
एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में छह लड़कों और तीन लड़कियों में तीसरे स्थान पर हैं।
उन्होंने अपनी एथलीट बहन चितुंग लापुंग की तरह ही खेलों को ही अपना करियर अपनाया।
अरुणाचल प्रदेश के सैम्बो लापुंग ने बताया कि,
मैंने पहली बार 2008 में केवल एक साल के लिए बॉक्सिंग करने की कोशिश की थी, लेकिन मैंने इसे छोड़ दिया।
साम्बो लापुंग ने 36वें राष्ट्रीय खेलों में, वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण जीतने के तुरंत बाद मुस्कुराते हुए कहा।
खेल को बदलने के कारणों को याद करते हुए, सैम्बो लापुंग ने कहा:
“मैं शुरु से ही एक मुक्केाजी में जाना था जिसके लिए मैनें ईटानगर में मुक्केबाजी के खेल केंद्र में भी शामिल हो गया।
हम वेटलिफ्टिंग के साथ ट्रेनिंग लेते थे और मैंने देखा कि,
वेटलिफ्टिंग के कोच हमारी वार्डों की तुलना में बहुत अधिक अच्छे थे।
उन्होंने कहा हमारे बॉक्सिंग कोच, जिन्होंने थोड़ी सी भी गलतियों के लिए हमें पीटा।”
एक समय पर सैम्बो लापुंग इतने निराश थे कि वे केंद्र को ही छोड़ना चाहते थे।
गोल्ड मैडल जीतने के बाद उन्होंने कहा, अपने शुरुआती दौर में अरुणाचल प्रदेश के वेटलिफ्टिंग अधिकारी अब्राहम ने,
मेरी प्रतिभा का आकलन करने के लिए आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट से कोच मिलने के बाद इसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।”
सैम्बो लापुंग ने कहा, राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीतना अच्छा लगता है, लेकिन मेरे लिए जो अधिक महत्वपूर्ण है वह राष्ट्रीय रिकॉर्ड था।
मैं ट्रेनिंग में भारी वजन उठा रहा हूं लेकिन मेरा कोच चाहते थे कि मैं नए सिरे से शुरुआत करूं।
उन्होनें बताया कि सेना में हवलदार के रूप में काम करते हुए उन्हें अपनी सीमित सैलरी के लिए संघर्ष करना होता था।
सैम्बो लापुंग ने कहा कि हर साल बैंक ऋण की मदद से डाइट की खुराक की उनकी आवश्यकता पूरी कर रहे थे।