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हॉकी खेल विश्व में सबसे ज्यादा खेले जाने वाले खेलों में से एक है. जिसे हर देश में अलग-अलग तरीके से पसंद किया जाता है. हॉकी का पहला उल्लेख 18वीं शताब्दी में एक किताब में मिल सकता है. हालांकि शब्द रूप में देखा जाए तो हॉकी शब्द मध्यकाल के फ्रेंच शब्द हॉकेट से निकलता है. हॉकेट का मतलब होता है चरवाहे का घुमावदार डंडा जिसकी आकृति हॉकी की स्टिक से मिलती है. आज से हजार वर्ष पहले मिस्त्र, प्राचीन यूनान, आयरलैंड और मंगोलिया में यहाँ के इतिहास हॉकी से मिलते-जुलते है. आईये जानते है इससे जुड़ी जानकारी के बारे में.
फील्ड हॉकी का इतिहास और इससे जुड़ी जानकारी
हॉकी का वर्तमान स्वरुप में फील्ड हॉकी का खेल 19वीं सदी में ही शुरू हुआ था. आधुनिक समय में हॉकी को लोकप्रिय बनाने का श्रेय ब्रिटेन की सेना को जाता है. ब्रिटेन के कब्जे वाले देशों में जहां भी ब्रिटेश सेना की छावनियां थी वहां ब्रिटिश सैनिक हॉकी खेला करते थे. भारत के अंदर भी हॉकी का खेल ब्रिटिश सेना ने ही लोकप्रिय किया था.
भारत का राष्ट्रीय खेल भी हॉकी ही है और वैसे भी अब हॉकी का खेल सब जगह खेला जाता है. यह तेज खेला जाने वाला खेल है जो दो टीमों के बीच खेला जाता है. सभी खिलाड़ियों का लक्ष्य अधिक गोल कर करके दूसरी टीम को हराना होता है. हमारा देश भारत भी 1928 में हॉकी में विश्व विजेता रह चुका है और ओलम्पिक खेलों में 6 गोल्ड मैडल भी प्राप्त कर चुका है.
वर्ष 1928 से 1956 तक का समय भारतीय फील्ड हॉकी के लिए स्वर्णकाल के रूप में जाना था. हॉकी के महान खिलाड़ियों ने भारतीय हॉकी को विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई है. और देश का नाम विश्व स्तर पर बनाया था. वे महान खिलाड़ी हॉकी खेलने के जादू को अच्छे से जानते थे और जिसने सभी के दिलों को जीता था. हॉकी खेल युवाओं द्वारा भी अच्छे से खेला जाता है. स्फूर्ति से भरा हुआ यह खेल भारत के युवाओं द्वारा भी काफी खेला जाता है. भारतीय हॉकी के क्षेत्र में लगातार कई सालों तक विश्व विजेता रह चुका है.
भारतीय हॉकी कि बात करें तो स्वर्णकाल नायक ध्यानचंद, अजीतपाल सिंह, धनराज पिल्लै, अशोक कुमार, ऊधम सिंह, बाबू निमल, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहिद, गगन अजीत सिंह, लेस्ली क्लॉडियस आदि रहे हैं. वे सभी असलियत नायक रहे हैं जिन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है.
बात करें भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद कि तो वह एक प्रतिभाशाली फील्ड हॉकी खिलाड़ी रहे हैं. 1928 में भारत हॉकी में विश्व चैंपियन बना था. जिसमें वह टीम में शामिल थे. उस के बाद भी भारत ने लगातार विश्व चैंपियनशिप को बरकरार रखा था. साल 1936 के बर्लिन ओलम्पिक खेलों में मेजर ध्यानचंद के शानदार खेल की बदौलत भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्णपदक जीता था. उन्होंने इस मैच में 6 अकेले गोल दागे थे.
भारतीय फील्ड हॉकी का इतिहास, और इसका स्वर्णकाल
कहा जाता है कि उस मैच में ध्यानचंद की परफॉरमेंस को देखते हुए जर्मनी के तानाशाह हिटलर उनके मुरीद बन गए थे. उन्होंने इसके बाद ध्यानचंद को जर्मनी की नागरिकता देने और जर्मन सेना में बड़ा पद देने की पेशकश की थी. लेकिन ध्यानचंद की देशभक्ति यहीं दिखती है कि उन्होंने तुरंत इसे लेने से मना कर दिया था.
इसके बाद साल 1932 में ओलम्पिक खेल हुए उसमें भी भारतीय टीम ने अमेरिका को 24-1 से हरा दिया था जो की सबसे बड़े अंतर की जीत का रिकॉर्ड आज भी बना हुआ है. इतने गोल में ध्यानचंद के अकेले 8 गोल थे. मास्को ओलम्पिक 1980 में भी स्वर्ण पदक जीता था लेकिन 1984 में फिर से स्वर्ण हार गए थे.
भारतीय खेल के रूप में फील्ड हॉकी को चुनने का सबसे बड़ा कारण ही यही है कि भारत में हॉकी का स्वर्णकाल 1928 से 1956 तक रहा था. उस समय भारतीय हॉकी टीम और खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया था और हॉकी को पूरे भारत में प्रसारित किया था. इसी वजह से भारतीय खेल के रूप में हॉकी को प्राथमिकता दी गई थी. स्वर्णकाल के दौरान भारत ने सक्रिय रूप से भागीदारी की और 24 ओलम्पिक खेलों में भाग लिया था. सबसे अधिक आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यह है कि भारत ने सभी मैचों को 178 गोल दागकर जीता था.
दुनिया के हर कोने में हॉकी खेल का वर्चस्व
अब यह खेल अन्य देश जैसे हॉलैंड, जर्मनी, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड आधी में काफी प्रसिद्द हुआ है. यह स्फूर्ति का खेल है जिसमें खिलाड़ियों को काफी चुस्त और फुर्तीला होना पड़ता है. और खिलाड़ियों को हर समय मैदान में चहलकदमी करनी होती है. यह दो टीमों द्वारा खेला जाता है जिसमें हर टीम में 11-11 खिलाड़ी होते है. जब तक खेल की समाप्ति नहीं होती तब तक खेल में खिलाड़ियों को चौकन्ना रहना पड़ता है. इसमें दोनों टीमों के पास एक-एक गोलकीपर होता है. साथ ही राईट बेक, सेंट्रल फॉरवर्ड और लेफ्ट बैक एक बहुत महत्वपूर्ण पोजीशन होती है.
हॉकी टीम के 11 खिलाड़ियों में पांच खिलाड़ी फॉरवर्ड, तीन हाफ बैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होता है. हॉकी टीम में ग्यारह के अलावा पांच खिलाड़ी अतिरिक्त होते है. हॉकी के एक मैच में 35-35 मिनट के दो भाग होते हैं. पुराने जमाने में हॉकी के मुकाबले घास के मैदान में होते थे लेकिन अब आजकल मुकाबले मैच एस्ट्रो टर्फ कृत्रिम घास पर होते हैं. फील्ड हॉकी में एक गेंद और सभी खिलाड़ियों के पास एक स्टिक होती है. गेंद को हाथ से छूने और हॉकी को कंधों से ऊपर उठाने की रोक होती है. वहीं हॉकी को 30 गज के घेरे यानी डी में अपने शरीर और पैरों की मदद से भी गेंद रोकने की इजाजत होती है.
हॉकी खेले जाने का तरीका और इसके नियम
इस खेल में मैच की शुरुआत मैदान के केंद से होती है. जब एक टीम का सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी बैक के पास के द्वारा अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी को गेंद सौंपता है. फिर दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच गेंद को गोल तक ले जाने की कशमकश होती है. और जो टीम के खिलाडी दूसरी टीम के गोल पोस्ट पर गेंद को पहुंचा देते है उन्हें एक गोल पॉइंट दिया जाता है. और जो टीम एक मैच में सबसे ज्यादा गोल प्राप्त कर लेती है उसे ही विजेता बनाया जाता है. और अगर समय खत्म होने तक दोनों टीमों के कोई भी खिलाड़ी फ़ाउल करता है तो दूसरी टीम को एक एक्स्ट्रा गोल करने का मौका दिया जाता है.
फील्ड हॉकी के अलावा भी अलग-अलग तरीके होते है खेलने के जिसमें एयर हॉकी, बीच हॉकी, बॉल हॉकी, बॉक्स हॉकी, डेक हॉकी, फ्लोर हॉकी, फुट हॉकी, जिम हॉकी, मिनी हॉकी, रॉक हॉकी, पोंड हॉकी, पॉवर हॉकी, रौसेल हॉकी, स्टेकर हॉकी, टेबल हॉकी, अंडर वाटर हॉकी, यूनिसाइकिल हॉकी आदि होते है.