हरियाणा के रोहतक में पीजीआईएमएस के स्पोर्ट्स मेडिसिन एंड स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर ने शनिवार को नया
कीर्तिमान स्थापित किया है। संस्थान के डॉक्टरों ने घुटने का नया टिश्यू डालकर 19 वर्षीय
कबड्डी खिलाड़ी का पैर बचा लिया। यही नहीं, अब वह पहले की तरह खेल भी सकेगा।
खिलाड़ी को करीब छह माह पूर्व खेलते समय चोट लग गई थी। इसके लिए मुंबई की लैब
में खिलाड़ी के घुटने से लिए सैंपल से छह सप्ताह में टिश्यू तैयार किया गया। इसे हवाई
जहाज से यहां लाया गया। इसके बाद ऑपरेशन हुआ। यह अपनी तरह का पहला
ऑपरेशन बताया गया है।
खिलाड़ी ने बताया कि खेलते समय उसके घुटने में चोट लग गई। इसके बाद से तकलीफ थी।
जांच कराने पर घुटना सही बताया गया। आराम नहीं होने पर स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर पर जांच
कराई। यहां एमआरआई रिपोर्ट में घुटने के जोड़ में कारटीलेज डिफेक्ट व लूज बाड़ी का
खुलासा हुआ। यह एक तरह की मांस की लेयर होती है। इसे टिश्यू भी कहते हैं। यह घुटने
के जोड़ के बीच में होती है। यह घुटने को आराम से बगैर किसी दिक्कत के घूमने में मदद
करता है। इसमें लेयर ही क्षतिग्रस्त हो गई थी। यह लेयर अपने आप ठीक नहीं होती है। इसे
या तो शरीर के दूसरे हिस्से से लिया जाता है या लैब में कल्चर तकनीक से बनाया जाता है।
यह काम मुंबई की टिश्यू कल्चर लैब में होता है।
डॉक्टरों ने घुटने का नया टिश्यू डाल कबड्डी खिलाड़ी का पैर बचाया
खिलाड़ी को चोट से राहत के लिए उसे ऑपरेशन की सलाह दी गई। साथ ही घुटने की क्षतिग्रस्त
लेयर यानी कारटीलेज लैब में विकसित कराने की जानकारी दी गई। इस पर सहमति बनने के बाद
छोटा ऑपरेशन घुटने से कारटीलेज का करीब पांच मिलीमीटर का टुकड़ा लेकर लैब में कल्चर के
लिए भेजा गया। यहां छह सप्ताह में इस टुकड़े से जरूरत के हिसाब से कारटीलेज तैयार कर
रोहतक भेजा गया। इसके लिए खास हवाई जहाज में 28 डिग्री तापमन वाले छोटे फ्रिज में यह
टुकड़ा मुंबई से लाया गया। चिकित्सीय भाषा में इसे 42 मिलियन कल्चर कहते हैं। इसके बाद
यहां खिलाड़ी का ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन करीब डेढ़ घंटे चला। कारटीलेज एक मजबूत,
लचीला संयोजी उत्तक है। यह जोड़ों और हड्डियों की रक्षा करता है। यह हड्डियों के सिरों पर शोक
आब्जर्वर के रूप में कार्य करता है। जोड़ों में हड्डियों के अंत में कारटीलेज घर्षण को कम करता है।
उन्हें आपस में रगड़ने से रोकता है।