भारत में कई ऐसे खिलाड़ी है जो गुमनामी की जिन्दगी जी रहे है. वहीं बिहार राज्य में भी ऐसे हॉकी के खिलाड़ी ही जिन्होंने हॉकी को अन्तर्राष्ट्रीय पर पहचान दिलाई है. जिसमें पूर्व कप्तान जयपाल सिंह मुंडा का नाम भी शामिल है. जो बिहार से थे और उन्होंने पहली बार ओलम्पिक जीतने वाली भारतीय टीम का नेतृत्व किया था. वहीं बिहार के ही अभिजित रॉय भी भारतीय हॉकी टीम से खेल चुके है. ऐसे ही खिलाड़ियों को आदर्श मान अन्य युवा भी हॉकी में अपनी किस्मत आजमाते हैं. वहीं सही हॉकी कोच नहीं मिल पाने से भी उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है.
हॉकी कोच मेहनत मजदूरी से सिखा रहे खिलाड़ियों को खेल
पटना में हॉकी के खिलाड़ियों कि सबसे बड़ी दिक्कत ग्राउंड की है. उसके ना होने की वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ग्राउंड पर उग रहे जंगल को ही खुद साफ़ कर उसपर खेलने को मजबूर है. साथ ही उन्हें यह डर भी रहता है कि कहीं उन्हें इस मैदान से भी ना भगा दिया जाए. वहीं पटना हॉकी की एक टीम आरके रॉय हॉकी टीम के कोच विकास कुमार बताते हैं कि वो एक अखबार से प्रिंटिंग विभाग में रात की नाईट ड्यूटी करते है. उसके बाद दोपहर 12 बजे से ग्राउंड में बच्चों को हॉकी सिखाने आ जाते हैं. दिन भर प्रैक्टिस करवाने के बाद फिर काम पर निकल जाते है.
वह आगे कहते है कि पटना में हॉकी खेलने के लिए ग्राउंड की बहुत दिक्कत है. अगर इनको प्रैक्टिस करने के लिए सही व्यवस्था मिले तो बिहार के खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे और देश का नाम रोशन करेंगे. कोच बताते हैं कि जिस ग्राउंड में हम लोग अभी प्रैक्टिस करवा रहे हैं यह वेटनरी कॉलेज का जंगल वाला हिस्सा है. जिसे खिलाड़ियों ने साफ़ कर के खेलने लायक बनाया है.