भारतीय हॉकी के स्वर्णिम दिनों में शामिल मेजर ध्यानचंद का मैच जीताने वाला
सारा पल हर भारतीय के जहन में शामिल है.
हॉकी के जादूगर माने जाने वाले प्लेयर मेजर ध्यानचंद अपनी हॉकी के लिए इतने
न्योछावर थे कि वह बुखार में तपते हुए भितीम के लिए हॉकी खेले और टीम को जीत भी दिलाई.
यह बात 1928 के ओलिंपिक की है जब भारत के टीम का हिसा रहें
भारतीय हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद ने अपने शानदार खेल के प्रदर्शन से टीम को फाइनल मुकाबले तक पहुंचाया था.
एक के बाद एक शानदार प्रदर्शन कर मैच जीतने के बाद भारत की टीम का
मुकाबला हॉलैंड की टीम से फाइनल में होना था. लेकिन मैच से ठीक
एक दिन पहले टीम के सबसे अहम प्लेयर मेजर ध्यानचंद को तेज बुखार हो गया था.
टीम के मैनेजर ने ध्यानचंद को नहीं खेलने की सलाह दी थी.
लेकिन तब जो बात ध्यानचंद ने कही वो उन्हें भारत का नहीं बल्कि विश्व का हॉकी में महानतम खिलाड़ी बनाती है.
बता दें हॉलैंड के मैच से पहले ध्यानचंद को 103 डिग्री बुखार था लेकिन
फिर भी वो फाइनल में खेलने उतरे थे.
बुखार में खेलते हुए भी जीताया स्वर्ण
तब उन्होंने टीम के मैनेजर की एक बात भी नहीं सुनी और टीम के लिए खेलने उतर गए थे.
टीम के साथी खिलाड़ी सही मैनेजर ने भी उनके इस जज्बे को सलाम किया था.
टीम के शुरू से लेकर आखिर तक हॉलैंड की टीम ध्यानचंद के पीछे ही लगी रहे
और गेंद को उनके पास जाने से रोकने का प्रयास करती रही.
लेकिन जैसे गेंद ध्यानचंद के पाले में गई उसके बाद उन्होंने
एक के बाद एक तीन लगातार गोल कर टीम को 3-0 से बढ़त दिलाई थी. यह बढ़त ही भारत के जीत का कारण बनी.
और हॉलैंड की टीम इसके बाद एक भी गोल नहीं कर पाई.
ध्यानचंद के इसी जज्बे को देखते हुए टीम के साथी ही नहीं विश्व
के सभी खिलाड़ी उनके सामने फीके नजर आते थे.
उनके अंदर जो सैनिक भावना थी वहीं उनके लिए देशप्रेम को
जगाने के लिए काफी थी. इसी जज्बे के साथ वह अपने खेल को भी खेलते थे.