भारत में कईं हॉकी खिलाड़ी हुए है जिन्होंने हॉकी को विश्वपटल पर पहचान दिलाई है. और खुद का भी नाम बनाया है. आज हम ऐसे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के बारे में बात करने जा रहे हैं जिन्होंने हॉकी में कड़ी मेहनत से नाम बनाया फिर पुलिस में सेवा करना शुरू किया. हॉकी खिलाड़ी धर्मवीर सिंह कि हम बात कर रहे हैं जो एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
धर्मवीर सिंह ने मेहनत से बनाया हॉकी में नाम
धर्मवीर संघ का जन्म अगस्त 1990 में हुआ था. 10 साल की कम उम्र से ही उनमें हॉकी को लेकर जूनून भरा हुआ था. उन्होंने पहली बार 10 की उम्र में जालंधर में स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में अपने दोस्त की हॉकी मांगकर ट्रायल दिया था लेकिन उनका चयन नहीं हो सका था. जिला रोपड़ के खैराबाद गांव में पैदा हुए धर्मवीर का सफर हॉकी में काफी लम्बा रहा है. उन्होंने ओलम्पिक, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और कई बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर भारत को स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिलाया है.
10 साल की उम्र में विफल होने के बाद दो साल बाद उन्होंने फिर चंडीगढ़ में ट्रायल दिया लेकिन इस बार भी उनके पास पैसे नहीं थे. ऐसे में उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हॉकी के जूनून के चलते उन्होंने अपने 4 पालतू कबूतरों को बेच दिया था. उससे आए 300 रुपए से उन्होंने किराया जुटाया और ट्रायल दिया था. उनकी इसी मेहनत के चलते उनका इस ट्रायल में चयन हो गया था और उसके बाद उनके प्रदर्शन से उन्होंने सबको मोहित कर दिया था. इसके बाद उन्होंने अपना सफर नहीं रुकने दिया और ध्यानचंद अवार्ड तक की मंजिल को अपने नाम किया था.
हॉकी ट्रायल में जाने के लिए कबूतरों को बेचा
लेकिन साल 2011 में उनके साथ हुई एक घटना ने उन्हें झंझोड़ कर रखा दिया. दरअसल कुछ लुटेरों ने उन्हें गोली मारकर उनसे सब छीन लिया. इसके बाद उन्होंने पुलिस से काफी मदद मांगी लेकिन उन्हें नहीं मिली. उसके बाद ही उन्होंने पुलिस में जाने का निर्णय कर लिया था.
और अब वह पुलिस में रहकर अपनी सेवा दे रहे है और जरुरतमंदों की मदद भी कर रहे हैं.