भारतीय हॉकी हमेशा भारतीयों का प्रिय खेल रहा है.
इस खेल को लोग बरसों से खेलते आ रहे है तो यह भारत की विरासत बन चुका है.
लेकिन अगर विरासत की ही अनदेखी कर भुला दिया जाए तो फिर
विकास यात्रा पर संदेह और सवाल उठने शुरू हो जाते हैं. यह बात
है रांची के उस मैदान की जिसने देश को पचास से अधिक
खेल हॉकी के प्रशिक्षण केंद्र का हाल हुआ जर्जर
अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए है. लेकिन आज वही मैदान नई
खेल नीति से अपनी पुरानी विरासत और गौरव को वापस मांग रहा है.
रांची के बरियातू का पुराना हॉकी मैदान फिर से चमकने को बेताब है.
दरअसल बरियातू गर्ल्स हाई स्कूल का पुराना एतिहासिक हॉकी मैदान
अनदेखी की वजह से जंगल में तब्दील होता जा रहा है. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
पर हॉकी के चमकने की कहानी झारखंड में 1975 से इसी मैदान से
शुरू हुई थी जब सावित्री पूर्ति ने भारतीम टीम में जगह बनाई थी.
और इसी के बाद यहां से अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के निकालने की शुरुआत हुई थी.
इसके बाद से यह कहानी विश्वासी पूर्ति, जसमनी सांगा, हेलेन सोय,
सुमराय टेटे, अल्मा गुड़िया और असुंता लकड़ा होते हुए आज
निक्की प्रधान तक पहुंची है. इस दौरान अलग अलग समय में दूसरी कई
खिलाड़ी देश के खेलती नजर आई. इस मैदान से निकली हर खिलाड़ी
ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और 200 से
ज्यादा नेशनल खिलाड़ी बनने का गौरव प्राप्त किया. लेकिन बरियातू
गर्ल्स हाई स्कूल परिसर में ही नया एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम बनने के बाद इस मैदान को भुला दिया गया.
हालांकि बरियातू गर्ल्स हाई स्कूल की प्रिंसिपल मिताली सरकार
50 से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों ने लिया प्रशिक्षण
बताती हैं कि पुराने हॉकी के मैदान के कायाकल्प करने की
पूरी तैयारी कर ली गई है.और जल्द ही यहां पर बच्चियां
फुटबॉल खेलती नजर आएंगी. इस मैदान के बीच में ही मॉनसून
में एक पेड़ भी गिरा है जिसे हटाने को लेकर वन विभाग को पत्र भेजा गया है.