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भारतीय फील्ड हॉकी के स्वर्णकाल नायक ध्यानचंद, अजीतपाल सिंह, धनराज पिल्लै, अशोक कुमार, ऊधम सिंह, बाबू निमल, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहिद, गगन अजीत सिंह, लेस्ली क्लॉडियस आदि शानदार खिलाड़ी रहे हैं. वे सभी असलियत नायक रहे हैं जिन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है.
भारतीय हॉकी ने दिए है शानदार खिलाड़ी
बात करें भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद कि तो वह एक प्रतिभाशाली फील्ड हॉकी खिलाड़ी रहे हैं. 1928 में भारत हॉकी में विश्व चैंपियन बना था. जिसमें वह टीम में शामिल थे. उस के बाद भी भारत ने लगातार विश्व चैंपियनशिप को बरकरार रखा था. साल 1936 के बर्लिन ओलम्पिक खेलों में मेजर ध्यानचंद के शानदार खेल की बदौलत भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्णपदक जीता था. उन्होंने इस मैच में 6 अकेले गोल दागे थे.
बेटन कप का नाम हॉकी की दुनिया में काफी ऊंचा है. हॉकी के सबसे पुराने टूर्नामेंट में से एक बेटन कप को आज भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में जाना जाता है. साल 1895 में इस कप की शुरुआत की गई थी. यह टूर्नामेंट देश के सबसे माने हुए टूर्नामेंट में से एक हैं. इस टूर्नामेंट का आयोजन हर वर्ष कोलकाता में होता है. इस टूर्नामेंट में भारत के शीर्ष क्लब और अन्य टीमों की हिस्सेदारी होती है.
भारतीय खेल के रूप में फील्ड हॉकी को चुनने का सबसे बड़ा कारण ही यही है कि भारत में हॉकी का स्वर्णकाल 1928 से 1956 तक रहा था. उस समय भारतीय हॉकी टीम और खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया था और हॉकी को पूरे भारत में प्रसारित किया था. इसी वजह से भारतीय खेल के रूप में हॉकी को प्राथमिकता दी गई थी. स्वर्णकाल के दौरान भारत ने सक्रिय रूप से भागीदारी की और 24 ओलम्पिक खेलों में भाग लिया था. सबसे अधिक आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यह है कि भारत ने सभी मैचों को 178 गोल दागकर जीता था.
हॉकी के बारे में जाने :-
यह स्फूर्ति का खेल है जिसमें खिलाड़ियों को काफी चुस्त और फुर्तीला होना पड़ता है. और खिलाड़ियों को हर समय मैदान में चहलकदमी करनी होती है. इस खेल में काफी स्फूर्ति और खुद को चौकन्ना रखना पड़ता है. इसमें दोनों टीमों के पास एक-एक गोलकीपर होता है. साथ ही राईट बेक, सेंट्रल फॉरवर्ड और लेफ्ट बैक एक बहुत महत्वपूर्ण पोजीशन होती है.
हॉकी टीम के 11 खिलाड़ियों में पांच खिलाड़ी फॉरवर्ड, तीन हाफ बैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होता है. हॉकी टीम में ग्यारह के अलावा पांच खिलाड़ी अतिरिक्त होते है. पुराने जमाने में हॉकी के मुकाबले घास के मैदान में होते थे लेकिन अब आजकल मुकाबले मैच एस्ट्रो टर्फ कृत्रिम घास पर होते हैं. फील्ड हॉकी में एक गेंद और सभी खिलाड़ियों के पास एक स्टिक होती है. गेंद को हाथ से छूने और हॉकी को कंधों से ऊपर उठाने की रोक होती है. वहीं हॉकी को 30 गज के घेरे यानी डी में अपने शरीर और पैरों की मदद से भी गेंद रोकने की इजाजत होती है.
हॉकी खेले जाने का तरीका और इसके नियम
इस खेल में मैच की शुरुआत मैदान के केंद से होती है. जब एक टीम का सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी बैक के पास के द्वारा अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी को गेंद सौंपता है. फिर दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच गेंद को गोल तक ले जाने की कशमकश होती है. और जो टीम के खिलाडी दूसरी टीम के गोल पोस्ट पर गेंद को पहुंचा देते है उन्हें एक गोल पॉइंट दिया जाता है. और जो टीम एक मैच में सबसे ज्यादा गोल प्राप्त कर लेती है उसे ही विजेता बनाया जाता है. और अगर समय खत्म होने तक दोनों टीमों के कोई भी खिलाड़ी फ़ाउल करता है तो दूसरी टीम को एक एक्स्ट्रा गोल करने का मौका दिया जाता है.
फील्ड हॉकी के अलावा भी अलग-अलग तरीके होते है खेलने के जिसमें एयर हॉकी, बीच हॉकी, बॉल हॉकी, बॉक्स हॉकी, डेक हॉकी, फ्लोर हॉकी, फुट हॉकी, जिम हॉकी, मिनी हॉकी, रॉक हॉकी, पोंड हॉकी, पॉवर हॉकी, रौसेल हॉकी, स्टेकर हॉकी, टेबल हॉकी, अंडर वाटर हॉकी, यूनिसाइकिल हॉकी आदि होते है.
वहीं आधुनिक हॉकी में कुछ नए नियमों का भी समावेश हुआ है. जिसमें हॉकी फाइव नाम के रूल को जोड़ा गया है. इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी. वहीं ओलम्पिक में चीन में हुआ था जिसे जोड़ा गया था. वहीं इस प्रारूप के अंतगर्त मैदान की लम्बाई को कम किया जाता है.बता दें इस प्रारूप में लम्बाई को नियमित रूप से मैदान से आधा कर दिया जाता है. वहीं इसके साथ ही इसमें कई साइज़ को भी कम कर दिया जाता है. इसके साथ ही मध्यरेखा से कोर्ट को दो हिस्सों में भी बाँट दिया जाता हैं. वहीं बात करें दो क्वार्टरलाइन को भी हर हाफ को दो हिस्सों में बाँट दिया जाता हैं.
क्या होता है पेनल्टी कार्नर
व्हेने एक गोल पेनल्टी सपोर्ट भी दो गोलपोस्ट के बीच सेंट्रल पॉइंट्स के बीच होता है. वहीं क्वार्टर लाइन के बीच होता हैं. हॉकी फाइव में टीमें कहीं से भी गोल कर सकती है. जबकि पारम्परिक हॉकी में डी के अंदर जाकर गोल करना होता है. जिसमें इस समय मैदान में पांच खिलाड़ियों का होना जरूरी होता है. इसमें एक खिलाड़ी गोलकीपर भी होता है. वहीं चार अन्य खिलाड़ी होते हैं.
वहीं हॉकी फाइव में पेनल्टी कार्नर नहीं होता है. वहीं टीम फ़ाउल होने पर उसे चुनौती जरूरी दी जा सकती है. उसकी मांग को मान लेने पर विरोधी गोलकीपर को आमने-सामने शूटआउट का मौका मिलता है. वहीं हॉकी फाइव मैच केवल बीस मिनट का होता है.
इसके साथ ही इसमें फिटनेस पर भी ध्यान दिया जाता है. इसके साथ ही खिलाड़ियों के कौशल पर भी ध्यान दिया जाता हैं. बता दें हॉकी फाइव में खिलाड़ियों को पूरे जोश के साथ खेलने के लिए किया. इस खेल में मैच की शुरुआत मैदान के केंद से होती है. जब एक टीम का सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी बैक के पास के द्वारा अपनी टीम के दूसरे खिलाड़ी को गेंद सौंपता है. फिर दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच गेंद को गोल तक ले जाने की कशमकश होती है. और जो टीम के खिलाडी दूसरी टीम के गोल पोस्ट पर गेंद को पहुंचा देते है उन्हें एक गोल पॉइंट दिया जाता है. और जो टीम एक मैच में सबसे ज्यादा गोल प्राप्त कर लेती है उसे ही विजेता बनाया जाता है. और अगर समय खत्म होने तक दोनों टीमों के कोई भी खिलाड़ी फ़ाउल करता है तो दूसरी टीम को एक एक्स्ट्रा गोल करने का मौका दिया जाता है.