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भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी आज पूरे भारत में पहचान पा रहा है. ऐसे में भारतीय टीम भी जीत के साथ इस खेल को युवाओं में प्रसारित कर रही है. व्हीब बता दें हॉकी इंडिया भी आजकल युवाओं को इस खेल को प्रसारित करने में मदद कर रही थी. ऐसे में राजस्थान राज्य में टोंक जिला है. जहां का गांव लावा में हॉकी का काफी बोलबाला है. जब अस्सी के दशक में हॉकी को कोई नहीं जानता था तब इस गाँव के कुछ लोगों ने हॉकी को बढ़ावा देने का काम किया था.
टोंक के गांव लावा में रहते हैं हॉकी सैंकड़ों प्लेयर्स
लावा गाँव में शंकर लाल साहू, नारायण लाल बुनकर और बाबूलाल माहुर जैसे खेल प्रेमियों ने गांव में हॉकी की शुरुआत की थी. और आज गांव में हॉकी का क्रेज इतना है कि हर घर में हॉकी का खिलाड़ी देखने को मिल जाएगा. और इसी कारण इस गांव में 100 से अधिक शारीरिक शिक्षक और 400 से अधिक राज्य स्तरीय खिलाड़ी रहते हैं. वहीं अब ये गांव राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता की मेजबानी भी करने जा रहा है.
शंकर लाल साहू और नारायण लाल बुनकर ने बताया कि उनके जमाने में ओक्के स्टिक भी उपलब्ध नहीं होती थी इसके चलते उन्होंने बबूल की लकड़ी से हॉकी स्टिक बनाई और अपने खेल के शौक को पूरा किया था. बाद में 90 के दशक में मदनलाल, चन्द्रप्रकाश शर्मा, प्रहलाद मीना और ओमप्रकाश खारोल जैसे खिलाड़ियों ने हॉकी को गांव में पहचान दी. और टोंक जिले में गांव का नाम रोशन किया. लोग टोंक जिले के लावा गांव को खेल गांव और हॉकी की नर्सरी के रूप में भी जानते है. युवाओं के बिना संसाधन संघर्ष के दम पर इस गांव ने यह मुकाम हासिल किया है.
हॉकी के चलते इस गांव ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है. यहां जिले के सर्वाधिक राज्य स्तरीय हॉकी खिलाड़ी भी रहते है. वरिष्ठ हॉकी खिलाड़ी और डिग्गी राजकीय माध्यमिक स्कूल में शारीरिक शिक्षक चन्द्रप्रकाश शर्मा ने बताया कि, ‘उनके दौर में ना तो खेल मैदान था ना ही इतने संसाधन उपलब्ध होते थे. साथ ही विद्यालय में स्टिक तक नहीं होती थी.’
उन्होंने आगे बताया कि, ‘गांव की स्कूल में खेल संसाधों और सुविधाओं की कमी थी लेकिन ग्रामीणों के सहयोग से युवा खिलाड़ियों को अपनी मंजिल मिली है. वहीं खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कि ओर से चलाई गई इनामी राशि प्रतियोगिता में यहां कि हॉकी टीम लगातार तीन बार चैंपियन रही है.