हॉकी महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का नाम हॉकी खेल के क्षेत्र में बड़े अदब से लिया जाता है.
उन्ही के जन्मदिवस पर भारत में हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस का आयोजन किया जाता है.
हालांकि मेजर ध्यानचंद के चाहने वाले और उनके परिजनों की मांग यह थी
कि मेजर ध्यानचंद को भारत का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न मिले
लेकिन अब उनके बेटे अशोक ध्यानचंद अब इस मांग से पीछे हट गए है.
अशोक ध्यानचंद ने दी पिता के बारे में जानकरी
अशोक ध्यानचंद का कहना है कि भारत सरकार की तरफ से उन्हें इतना बड़ा सम्मान दिया
जाना ही गर्व की बात है. उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित कर देना
और उनके सम्मान में खेल जगत का सर्वोच्च पुरस्कार का नाम
रखना ही उनके लिए सम्मान देने जैसी बात है.
वहीं भारतीय हॉकी टीम के 41 साल बाद ओलिंपिक में कांस्य पदक
जीतने पर भी अशोक ध्यानचंद ने ख़ुशी जाहिर की.
उन्होंने बोला कि हॉकी के लिए हम सबको अभी बहुत कुछ करना होगा.
41 साल बाद फिर से मैडल भारत की झोली में आया है
इसका मतलब है कि भारतीय हॉकी सही दिशा में जा रही है.
अपने पिता को बताया सबका आदर्श
आगे भी ऐसे सतत प्रयास करने पर भारत स्वर्ण पदक लाने में भी कामयाब रहेगा.
वहीं राष्ट्रमंडल खेलों में ऑस्ट्रेलिया से मिली हार पर भी बात करते हुए अशोक ध्यानचंद ने कहा
कि अभी भी हमें बड़ी और मजबूत टीमों के साथ खेलने में और प्रैक्टिस की जरूरत रहेगी.
ध्यानचंद को याद करते हुए उन्होंने बताया कि वह सिर्फ मेरे पिता ही नहीं
मेरे आदर्श, मेरे शिक्षक और पूर्णरूप से मेरे मार्गदर्शक भी थे.
उन्होंने मुझे खेल के बारे में बारीक से बारीक जानकारी बताई.
साथ ही खेल को किस भावना से खेला जाता है उसके बारे में भी उन्होंने मुझे बहुत सारी बातें बताई थी.
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि इस दुनिया में जब तक हॉकी खेली जाएगी
तब तक मेरे पिता मेजर ध्यानचंद का नाम गर्व से लिया जाएगा.
वह और उनका अमर हो चुका है जो किसी भी सम्मान से कही ज्यादा है.