Image Source : Google
भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रह चुकी रानी रामपाल का जीवन शुरुआत से ही काफी संघर्ष भरा रहा है. इसके चलते उन्हें काफी गरीबी में जीवन यापन करना पड़ा था. एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी कहानी बताई कि उनके पास भोजन की भी व्यवस्था नहीं होती थी. कच्चे मिटटी के मकान में उन्होंने अपना जीवन निकाला है. इसके साथ ही अगर सुबह का भोजन मिल जाता तो शाम के भोजन की दिक्कत आ जाती थी.
रानी रामपाल के संघर्ष की कहानी
रानी ने आगे बताया कि पहले तो उनके घरवाले हॉकी खेलने के लिए राजी नहीं हो रहे थे. लेकिन मैंने माता-पिता को कहा कि हॉकी खेलना चाहती हूँ इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि रिश्तेदार और समाज वाले क्या सोचेंगे. रानी रामपाल ने बताया कि उन्होंने अपने गांव में सात साल की उम्र में ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था. उस समय लड़कियों को बाहर आने की अनुमति नहीं थी. छोटे शॉर्ट्स के साथ खेलना तो और कठिन होता था. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और खेलना जारी रखा था.
रानी रामपाल कि बात करने तो वह भारतीय महिला हॉकी में सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से एक है. इसी साल उन्होंने फिर से भारतीय टीम में वापसी की है. इससे पहले उन्होंने 2021-22 में एफआईएच प्रो लीग खेला था.जिसमें उन्होंने 250 अन्तर्राष्ट्रीय मैच पूरे किए थे. टोक्यो ओलम्पिक के बाद से वह चोट की वजह से मैदान के बाहर थी. इतना ही नहीं उन्होंने टोक्यो ओलम्पिक के बाद से किसी भी बड़े टूर्नामेंट में भाग नहीं लिया था.
रानी रामपाल देश की पहले महिला खिलाड़ी बन गई है जिनके नाम पर स्टेडियम बना है. रायबरेली में एक हॉकी स्टेडियम का नाम बदलकर रानी रामपाल के नाम पर किया गया है. अपने नाम पर स्टेडियम का नामकरण किए जाने पर रानी बहुत खुश नजर आई हैं. इसके साथ ही खिलाड़ियों को उन्होंने प्रोत्साहित किया था.