भारत में चल रहे 15वें हॉकी विश्वकप में दुनिया भर की टीमें खेलने आ रही है. इसके लिए वेल्स की टीम ने भी पहली बार इस प्रतियोगिता में कदम रखा है. लेकिन वेल्स ऐसा देश है जहां हॉकी के खेल को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है. वेल्स टीम के सफर की कहानी काफी अनोखी है. अपनी टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए खिलाड़ियों को पैसे मिलते है जबकि वेल्स की कहानी कुछ और ही है. दिलचस्प बात है कि वेल्स के खिलाड़ियों को अपने देश को ही फीस देनी पड़ती है.
हॉकी टीम वेल्स के खिलाड़ी खुद से करते है सारा खर्चा
वेल्स में हॉकी का खेल ज्यादा लोकप्रिय नहीं है. यहाँ पर हॉकी का सबसे बड़ा स्टेडियम जो है उसमें दर्शक क्षमता मात्र 200 की है. वेल्स की टीम में कोई भी प्रोफेशनल खिलाड़ी नहीं है. इस टीम में कुछ खिलाड़ी वैज्ञानिक है तो कुछ खिलाड़ी सॉफ्टवेर इंजिनियर है. वहीं वेल्स के मुख्य कोच डेनियल न्यूकोम्बे ने बताया कि, ‘टीम को विश्वकप में हिस्सा लेने के लिए आर्थिक तौर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.’
वेल्स देश के खिलाड़ियों की कहानी अलग है ये इंडिया तक चंदे के माध्यम से पहुंचें है और कुछ खिलाडियों ने तो अपने जेब से पैसे मिलाए है तब जाकर वो यहाँ पहुंचे हैं. इतना ही नहीं भारत में रहने, खाने के लिए भी वह खुद की जेब से पैसे चुका रहे हैं. उन्होंने भारत में खेलने के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा लिया था और फिर यहाँ खेलने आए थे.
वहीं वेल्स के फॉरवर्ड खिलाड़ी प्रिटचार्ड जैक पेशेवर वैज्ञानिक हैं. हालंकि उन्हें हॉकी खेल से ज्यादा प्यार है. और वह इसके लिए अपने को भी छोड़ सकते हैं. उन्होंने इस बारे में कहा कि, ‘हॉकी और पेशा में से किसी एक को चुनना पड़े तो मैं हॉकी को ही चुन लूंगा. मेरे देश में सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम भारत में स्थित स्टेडियम के मुकाबले काफी छोटा है. और उनकी मात्रा सिर्फ 200 दर्शक की है.’
वेल्स ने अपने वर्ल्डकप में स्थान को काफी मेहनत से पाया है. उन्होंने इसके लिए यूरोपीय क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के जरिए वर्ल्डकप में जगह पाई थी. बता दें वेल्स का अलग मुकाबला भारत से ही होने वाला है.